बदायूं की बात – सुशील धींगडा के साथ
माफियाओं का जनपद में कोई सानी नहीं है इनकी और कोई कहानी नहीं है। जिसकी सत्ता और जिसमें दम, उसी में माफिया नहीं हैं किसी से कम। आज एक बात आम आदमी के बीच चर्चा का विषय बनी हुई है कि आखिर बदायूं वालों में क्या कमी है कि जनपद की प्रतिभाओं और जनपद वासियों की व्यवसाईयों का गला घोंट कर कब तक बाहरी लोगों को बदायूं का ताज बनाया जाएगा। राजनेतिक मैदान से शुरू हुआ यह योजनावृद्ध खेल आज शिक्षा के मैदान से होता हुआ सरकारी योजनाओं को ठिकाने लगाने तक पहुंच गया है और पता नहीं इसका अंत कब, कैसे और कहां होगा। आज की कहानी की बात बदायूं के निकटवर्ती एक जनपद से शुरू हुई जिसमें हमारे जनपद के बहुचर्चित दददा ने एक युचक को बदायूं में लाकर खडा किया उस समय राजनेतिक गलियारे में दददा की तूती बोलती थी और उन्हीं का दामन थामकर दिन रात रोटी की जुगाड में इधर से उधर भागमभाग करके जीवन व्यतीत करने वाला दददा का प्रयोजित माफिया बदायूं में पहुंच गया और सत्ता बदलने के साथ अब वह दददा का नहीं रहा वक्त के साथ उसके आका बदल गए और अब वह सबकों पैसे केे दम पर खरीदने के सपने देखने लगा है क्योंकि उसको पता है कि उसके चांदी के जूते में अब इतना दम है कि हर कोई उसके चरण छूने को राजी हो जाएगा और उसको यह बात एक स्तर तक सही लग रही है क्योंकि तमाम बैंड बाजे वाले उसकी तूती से उसका राग निकालकर दरबारी की भूमिका का निर्वाह कर रहे हैं और इन्हीं दरबारियों के बीच बैठकर वह माफिया बदायूं में अपना राजमहल बनाने में पूरी तरह मस्त और व्यस्त है।
