कुदरत ने फेरा अन्नदाताओं के अरमानों पर पानी
वजीरगंज बदायूं
जमाने का दर्द लेकर मुस्कुराने वाले और हर मुश्किलों और परेशानियों से ना घबराने वाले जमाने को अपने खून पसीने की मेहनत कर अन्य पैदा कर देश के देश हर नागरिक का पेट भरने के लिए कर्ज से लेकर से लेकर अपना अपने सुहाग की चूड़ियों को गर्मी रखकर गर्मी बरसात और जाडे के मौसम में खुले आसमान के नीचे बेफिक्र होकर खेतों में साल भर की कमाई के साथ-साथ घर के सारे परिवार के सारे सपने खेतों में बिखरने वाले अन्य दाताओं पर कुदरत कब कहर बनकर वर्ष जाए यह होने खुद नहीं मालूम लेकिन कुदरत के सहारे खून पसीने की मेहनत करने वाले अन्नदाता अपने खेतों में अपने साथ-साथ अपने परिवार का भविष्य भी दांव पर लगा देते हैं इस समय जहां अन्नदाताओं के खेतों में गेहूं की फसल की कटाई लगातार चल रही है वहीं 2 दिन से हो रही लगातार वारिस ने अपना केहर ढाना शुरू कर दिया है
बेवस और लाचार किसान सर पड़कर अपनी किस्मत को कुसता हुआ नजर आ रहा है लेकिन संबंधित विभाग के कर्मचारियों ने फसल के नुकसान की पैमाइश करना भी उचित नहीं समझा है जिससे सरकार के साथ-साथ जिम्मेदारों के प्रति भी अन्य दाताओं में रोस है
अनुराग मिश्रा