बदांयू 10 अप्रैल।
बदांयू के प्राइवेट स्कूलों में किताबों के नाम पर अभिभावकों से खुली लूट हो रही है। स्कूल प्रबंधन बुक सेलर्स से साठगांठ कर चुनिंदा दुकानों पर ही किताबें बिकवा रहे हैं, जिससे अभिभावकों को महंगी रेफरेंस बुक और स्टेशनरी खरीदने पर मजबूर होना पड़ रहा है।
आवास-विकास कालोनी निवासी आराधना सिंह की बेटी एक निजी स्कूल में पढ़ती है। नए शैक्षिक सत्र में उसकी आठवीं की किताबों का सेट 11,563 रुपये में मिला। सेट में 21 किताबें 7884 रुपये की हैं, जबकि नोटबुक, स्टेशनरी और पेपर आइटम 2979 रुपये के हैं। आराधना ने बताया कि ये किताबें मार्केट में सिर्फ एक दुकान पर मिलती हैं। मिर्धा टोला निवासी राम कुमार के दो बच्चे एक निजी स्कूल में हैं। बेटा पांचवीं में तो बेटी दसवीं में। बेटे की किताबें 8500 रुपये में मिलीं। बेटी की किताबें 5060 रुपये में मिलीं। स्टेशनरी के साथ पूरा सेट 8375 रुपये में मिला। राम के मुताबिक, स्कूल में एनसीईआरटी की किताबों के अलावा महंगी रेफरेंस बुक भी चलाई जा रही हैं। इन रेफरेंस बुक के कारण पूरे सेट की कीमत दो गुना बढ़ जाती है।————————————-**
निजी स्कूलों में नया शैक्षिक सत्र शुरू हो गया है। हर बार की तरह किताबों के लिए दुकानों पर लंबी कतारें लग रही हैं। उप्र स्ववित्तपोषित स्वतंत्र विद्यालय (शुल्क विनिमय) अधिनियम-2018 के तहत स्कूल किसी खास दुकान से किताबें खरीदने को मजबूर नहीं कर सकते। ऐसे में स्कूलों की बुकलिस्ट भी सार्वजनिक है।
इसके बावजूद प्रकाशकों से साठगांठ की बदौलत तमाम निजी स्कूलों की किताबें चुनिंदा दुकानों पर ही मिल रही हैं। कहीं किताबों के साथ स्टेशनरी का पूरा सेट खरीदना पड़ रहा है तो कहीं महंगी रेफरेंस बुक के कारण अभिभावकों की जेब ढीली हो रही है।
———————————————-
सीबीएसई की गाइडलाइन के अनुसार, स्कूलों में सिर्फ एनसीईआरटी की किताबें चलाने के निर्देश हैं। केंद्रीय विद्यालय (केवी) संगठन के सभी स्कूलों में इसका पालन होता है। केवी में निजी प्रकाशकों की रेफरेंस बुक खरीदने की बाध्यता नहीं है। इसके उलट निजी स्कूलों ने बुक लिस्ट में निजी प्रकाशकों की महंगी रेफरेंस बुक भी शामिल कर ली हैं। इसी तरह जूनियर क्लास की बुक लिस्ट में भी निजी प्रकाशकों की कई ऐसी महंगी किताबें शामिल हैं, जिनका सालभर में एक बार भी इस्तेमाल नहीं होता।
———————————————–
ज्यादातर निजी स्कूलों की किताबें खास दुकानों पर ही मिलती हैं। ऐसे में कमाई के लिए दुकानदार इसका पूरा फायदा भी उठाते हैं। इन दुकानों पर अभिभावकों को किताबों के साथ महंगी स्टेशनरी का भी पूरा सेट खरीदना पड़ रहा है।
———————————
—–
स्कूलों और निजी प्रकाशकों ने अभिभावकों की जेब काटने के लिए कस्टमाइज किताबों का खेल भी शुरू कर दिया है। इन किताबों में पूरा कंटेंट सामान्य किताबों जैसा ही होता है, लेकिन कवर पेज और चैप्टर आगे-पीछे कर दिया जाता है। सामान्य किताबें 200 से 250 रुपये में मिलती हैं, जबकि ये कस्टमाइज 500 से 550 रुपये में बेची जाती हैं।
फीस रेगुलेशन एक्ट के मुताबिक कोई भी स्कूल किसी भी अभिभावक को एक ही दुकान से किताबें खरीदने के लिए बाध्य नहीं कर सकते हैं। स्कूल किताबों और स्टेशनरी खरीदने के लिए अभिभावकों को बाध्य न करें। अपनी बुक लिस्ट ओपन रखें। जहां से सुविधा हो वहां से अभिभावक खरीद लें।———————————————-अभिभावको का कहना है कि सीबीएसई सीआईएससीई से संबद्ध स्कूलों में किताबों के लिए कोई साफ दिशा-निर्देश नहीं है। बोर्ड की ओर से प्रकाशक भी तय नहीं होते। स्कूल खुद ही फैसला करते हैं कि कौन सी किताबें चलेंगी। ऐसे में कुछ स्कूलों की किताबें ज्यादा महंगी मिलती हैं तो कुछ में थोड़ी कम महंगी। स्कूलों को ऐसी किताबें चलानी चाहिए, जो अभिभावक आसानी से खरीद सकें। सरकार को भी कम से कम तीन साल पर किताबें बदलने का शासनादेश जारी करना चाहिए।——————————————-अभिभावकों का कहना है कि स्कूल हर नए सत्र में फीस, कॉपी-किताबों और यूनिफॉर्म की खरीद के दौरान अभिभावकों को लूटने का कोई तरीका नहीं छोड़ते। कई मामलों में नियम साफ नहीं है और शिकायत के लिए पर्याप्त माध्यम भी नहीं है। डीआईओएस और बीएसए को हेल्पलाइन नंबर जारी करना चाहिए, ताकि अभिभावक समस्या बता सकें———-************** सौम्य सोनी जिला संवाददाता