वैसे तो प्राइवेट स्कूलों के प्रबंधन पर कमीशनखोरी के आरोप हर वर्ष सामने आते हैं लेकिन इस वर्ष बदायूं के जीलाट स्कूल के संचालकों पर स्टेशनरी सहित तमाम सामान में कमीशन लगने के आरोप से हडकम्प मच गया है क्योंके अब तक जीलाट स्कूल को मध्यम वर्ग का स्कूल माना जाता था। प्रदेश स्तर पर की जाने वाली शिकायत में आरोप लगा है कि 20 से 40 प्रतिशत तक किताब कॉपी और बाकी सामान पर कमीशन वूसली जा रही है।
विदित रहे कि छोटे-छोटे बच्चों को आज के समय में प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाना हर किसी के हैसियत की बात नहीं रही क्योंकि इसमें कमीशनखोरी ने अपना पांव फैला दिया है. स्कूल की किताबों से लेकर कॉपी और यहां तक कि स्कूल ड्रेस तक पर बीस प्रतिशत से लेकर 40 प्रतिशत तक कमीशन तय दुकान से तय होने की बात सामने आये अथवा इस तरह का आरोप लगे तो आम आदमी सोचन को मजबूर हो जाना ऐसी प्रक्रिया है जिस पर पंब्रधन को नजर रखना चाहिए लेकिन सत्य है कि प्रबंधन इससे नजरें बचाता नजर आता है। मजेदार बात तो यह है कि सरकार द्वारा शिक्षा को आसान बनाने की दिशा में बहुत महत्वपूर्ण प्रयास किए जा रहे हैं तो लेकिन अधिकतर प्राइवेट स्कूलों ने कमीशनखोरी के बल पर अभिभावकों की जेब पर डाका डालने का काम करते हैं और यहां तक कि बच्चों के जूते से लेकर उनकी जुराब तक पर कमीशन का बोलबाला है. प्राइवेट स्कूल में आपका बच्चा पढता है और जब वह अगली कक्षा में आता है या आप उसका एडमिशन कराने जाते हैं तो वहां से आपको बता दिया जाता है कि हमारे स्कूल की ड्रेस हमारे स्कूल का कोर्स और यहां तक कि जूते तक आपको स्कूल द्वारा बताई गई दुकान पर मिलेंगे और कमीशनखोरी के इस गंदे खेल में आप यदि किसी दूसरी दुकान पर जाते हैं तो आपको स्कूल का कोर्स या दूसरा सामान नहीं मिलेगा क्योंकि कमीशन के चलते दुकान स्कूलों ने सेट कर रखी हैं और बताया जाता है कि 20ः से लेकर 40ः तक या इससे ज्यादा की कमीशन कोर्स ड्रेस तक पर बंधी हुई है।
शिक्षा विभाग के अधिकारियों के साथ जीलाट स्कूल के प्रबंधन को कमीशनखोरी की इस शिकायत की अपने स्तर से देखना चाहिए जिससे हर नौनिहाल शिक्षा पाने का अधिकार पा सके।
