8:14 am Monday , 3 March 2025
BREAKING NEWS

लोथर में चल रहे पांच कुण्डीय श्री लक्ष्मी नारायण महायज्ञ में परिक्रमा को जुटे श्रद्धालु

संवाददाता:
राजीव सक्सेना
उघैती:पांच दिवसीय लक्ष्मी-नारायण महायज्ञ में मंडप परिक्रमा करने के लिए रोजाना हजारों श्रद्धालु पहुंचने लगे हैं। धार्मिक आस्था के अनुरूप छोटे-छोटे बच्चे और महिला-पुरुष सुबह से ही परिक्रमा के लिए यज्ञ स्थल पर जुटने लग जाते हैं। क्षेत्र में महायज्ञ होने से इस तरह का धार्मिक वातावरण बना हुआ है कि नौकरी, रोजगार, खेती, मजदूरी या निर्धारित कार्य के लिए अन्यत्र जाने वाले भी पहले यज्ञ मंडप में प्रणाम और परिक्रमा करते हुए अपने अपने काम को निकलते हैं। लगभग सभी समुदाय के दिल दिमाग में धर्म और सदाचरण का संचार होने से महायज्ञ के गतिविधियों में शामिल होने लगे हैं। महायज्ञ के तीसरे दिन भी यज्ञ दर्शन के लिए उघैती क्षेत्र के गांव लोथर में काफी संख्या में श्रद्धालु पहुंचे। सुबह से देर शाम तक जारी हवन में भाग लेने तथा हवन का धुंआ ग्रहण करने के लिए मंडप परिसर में श्रद्धालुओं की भीड़ हमेशा लगी रहती है। शाम ढलते ही यज्ञ समापन और देवी देवताओं की आरती शुरू हो जाती है। इस कार्यक्रम में आचार्य के साथ उपस्थित नागरिक भी बड़ी संख्या में भाग लेते हैं। लाउडस्पीकर के माध्यम से अहर्निश धार्मिक गीत और महायज्ञ के मंत्रध्वनि गूंजने तथा रात में भजन कीर्तन का आयोजन होने से संपूर्ण क्षेत्र का वातावरण भक्तिमय बना हुआ है। यज्ञाचार्य मुनीश नारायण शास्त्री जी ने कहा है कि महायज्ञ का आयोजन होने से सर्व देवी देवता एवं सारे तीर्थ विराजमान होते हैं। शास्त्रोक्त इस आधार से यज्ञ मंडप परिक्रमा करने से मनोवांछित फल मिलता है। हिंदू शास्त्र में मंडप परिक्रमा के संबंध में वर्णित है कि यम यम चिंतयते कामम, तम तम प्राप्नोति निश्चितम। यानी जो व्यक्ति जिस कामना लेकर परिक्रमा करते हैं वे वैसा ही प्राप्त करते हैं। आचार्य ने बताया कि शुद्ध चित्त और लक्ष्मी-नारायण के प्रति समर्पण होकर मंडप परिक्रमा करना चाहिए। मन नही मन अगर ऊँ नमः भगवते बासुदेवाय का जाप करते हुए परिक्रमा किया जाता है तो एकाग्रता कायम रहता है और अधिक फलदायी साबित होता है। भगवान विष्णु के लिए कम से कम चार वार तथा अत्यधिक अपनी क्षमता के अनुसार 21,51 या 108 वार तक परिक्रमा करना लाभकारी सिद्ध होता है। उन्होंने कहा कि वैदिक काल से ही देवी देवता का परिक्रमा करने का सिद्धांत शुरू हुआ है।भगवान गणेश ने भी परिक्रमा किया है तथा सभी महायज्ञ में परिक्रमा करने का विधान रहा है। यही कारण है कि महायज्ञ संचालित मंडप सिर्फ एक बार परिक्रमा करने से अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है।