3:39 pm Tuesday , 25 February 2025
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त्योहार से पहले मिलावट का रंग खोया, पनीर व घी भी बदरंग

।********* बदांयू 25 फरवरी।
त्योहार से पहले बाजार में मिलावट का रंग शुरू हो गया है। खान-पान के कच्चे माल से लेकर डिब्बा बंद और पैकेजिंग वाली सामग्री भी भरोसे लायक नहीं है। अभी खाद्य सुरक्षा विभाग धर पकड़ की तैयारी ठीक से नहीं कर पाया है।
इसके पहले ही धंधेबाज मिलावटी खाद्य पदार्थों की बड़े पैमाने पर हेराफेरी करने में जुट गए हैं। रोडवेज से लेकर हाईवे के सभी प्रमुख अड्डों पर मिलावटी खोया, पनीर और देशी-घी की खेप पहुंचने लगी है। सुबह नौ से 10 बजे जनजीवन बहाल होने से पहले ही यह सामग्रियां मंडियों में बिकने के लिए पहुंच रही है।

होली में खोया, पनीर, घी की मांग बढ़ जाती है। त्योहार के प्रसिद्ध पकवान गुझिया की दीवानगी घरों से लेकर बाजार तक देखने को मिलती है। इस जोश में होश खोए तो भारी पड़ सकता है। मुनाफाखोरी के चक्कर में धंधेबाजों को आपकी सेहत का बिल्कुल परवाह नहीं है। आपके घरों और दुकानों पर रेडीमेड गुझिया तैयार करने के लिए बड़े शहरों से मिलावटी खोया मंगाया जा रहा है।
जानकारी के अनुसार, बाजार में खोया की डिमांड बढ़ गई है। अलीगढ़, बरेली, कासगंज जैसे शहरों से थोक भाव में 150 से 160 रुपये किलो की दर से 10 क्विंटल खोया की खेप प्रतिदिन जिले में खपाई जा रही है। यह खोआ रोडवेज की बसों या लांग रूट की प्राइवेट बसों से शहर एवं हाईवे के प्रमुख चौराहों पर उतार दी जाती है। यहां से छोटे वाहनों में लादकर इसे मंडी पहुंचाया जा रहा है।
इसके बाद पूरे दिन ग्रामीण अंचल के छोटे व्यापारियों में इसकी आपूर्ति की जा रही है। इसके अलावा बिनावर , सहसवान, आंवला आदि जगहों से मिलावटी पनीर, डिब्बा बंद देशी घी की आपूर्ति हो रही है। मारकीन के कपड़े में पांच किलो पनीर का चाक बनकर बोरियों में पहुंचाया जा रहा है।———————————–
आर्टिफिशियल चमक के साथ बिखर रही खुशबू मिलावटी खोया (मावा) दिखने में असली से ज्यादा चमकदार है। जानकार बताते हैं कि मैदा से तैयार होने वाले इस मावा में खुशबू के लिए विशेष किस्म के खुशबूदार तेल का इस्तेमाल होता है, जिसे हाथ में मसलने पर तैलीय हो जाता है, ताकि ग्राहक को इसके असली होने का आभास हो।————————-
एक ही सामग्री की कई वैरायटी। बाजार में एक ही सामग्री की तीन से चार वैरायटी अलग-अलग मूल्य पर बिक रही है। मूल्य के हिसाब से क्वालिटी का दावा किया जा रहा है, मगर, शुद्धता की गारंटी पर भरोसा करना अकलमंदी नहीं है।
मिठाई में पेड़ा, बर्फी, काजू कतली, लड्डू अलग-अलग रेट में उपलब्ध हैं। इसी तरह दाल, आटा, चावल, मसाला, तेल के भाव भी अलग-अलग है। जानकारों की मानें तो मिलावट का खेल सभी में है। किसी में कम तो किसी में ज्यादा हो रहा है।———————-