बदायूं की बात – सुशील धींगडा के साथ
पता नहीं बदायूं में वोट देने वाले मतदाताओं के वोट की ताकत में क्या कमी है जो बदायूं के तमाम जनप्रतिनिधियों को बदायूं की सबसे बडी जरूरत लम्बी दूरी की ट्रेन दिलाने का दायित्व याद नहीं रह पाता अथवा मतदाताओं के वोट मे वह कौन सा शहद मिला हुआ है जो जनप्रतिनिधि जनता के दर्द को भूलकर गहरी नींद में सो जाते हैं। कभी कोई कमी तो कभी कोई बहाना बनाना जनप्रतिनिधियों का ऐसी कहानी बन गई है जिसको सुनते – सुनते जनता उब गई है और जनता को लगने लगा है कि अपने सुख की चिंता में हमारे पालनहार जनता की जरूरत और दर्द देानों भूल गए हैं। अब तो लगने लगा है कि सपनों में जीना बदायूं की मजबूरी है जो दिल्ली अब भी दूरी है।
पहले कहा कि कासगंज से ट्रेन चलेगी जो बरेली होते हुए लखनउ तक चलेगी, फिर बताया कि बरेली से ट्रेन चलेगी जो कासगंज होते हुए लखनउ और दिल्ली को जोडेगी फिर कहने लगे सर्वे हो रहा ह ैअब उझानी से ट्रेन की नई कहानी लिखी जाएगी लेकिन जनता को कोई ट्रेन तो दूर एक झुनझना भी नहीं मिल पाया आखिर कोई तो बता दो जनता की खता क्या है और ट्रेन किसके प्रभाव से मिलेगी उनका पता क्या है।
