गोवर्धन पर्वत उठाकर श्रीकृष्ण ने चूर किया इंद्र का घंमड
बिल्सी। देवताओं के राजा इंद्र का अहंकार भी भगवान के समक्ष नहीं चला। यह विचार कथावाचक ऊषा देवी ने तहसील क्षेत्र के गांव बधौली में बह्मदेव मंदिर पर चल रही भागवत कथा के छठें दिन गोवर्धन पूजा का महत्व का प्रसंग सुनाते बताया। उन्होनें जब बृजवासी इंद्र की पूजा करने की तैयारी कर रहे थे, तब श्रीकृष्ण ने उन्हें रोका और इंद्र की जगह पर गोवर्धन पर्वत की पूजा करने के लिए कहा। इसके बाद लोगों ने इंद्र की पूजा की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा शुरू की। अपना अपमान होता देख इंद्र काफी नाराज हो गए और आक्रोश में वहां पर मूसलाधार बारिश शुरू कर दी। जिसके बाद बृजवासी श्रीकृष्ण को कोसने लगे कि सब उनके कहने से हुआ है। जिसके बाद श्रीकृष्ण ने अपनी शक्ति का प्रदर्शन करते हुए अपनी कनिष्ठा उंगली पर पूरा गोवर्धन पर्वत उठा लिया। इसके बाद सभी बृजवासी उसके नीचे आ गए। जिसके बाद इंद्र को अपनी गलती का अहसास हुआ और उसने श्रीकृष्ण से क्षमा मांगी। इसके बाद से ही गोवर्धन पूजा का प्रचलन शुरू हुआ। इस मौके पर ब्रजेंद्र कुमार वर्मा, हरवंश वर्मा, गोपाल बाबू, कल्याण वर्मा, श्रीराम, जंडैल सिंह, रुपसिंह, हेमसिंह आदि मौजूद रहे।