बदायूं की बात – सुशील धींगडा के साथ
थ्जले की समाजवादी राजनीति में एक समय था जब जिलाध्यक्ष बनवारी सिंह यादव के सामने अपने ढंग से अपनी बात कहने का साहस किसी सपाई में नहीं दिखता था और इसी लिए उस समय यह कहा जाता था कि बनवारी सिंह ने जो बात सही आखिर निकली वही सही और इसी के चलते बदायूं में सबसे लम्बी संसदीय पारी खेलने वाले सांसद सलीम इकबाल शेरवानी हमेशा चुपचाप अपनी बैटिंग करते रहे और आगे चलकर बनवारी सिंह यादव के समय में बदायूं को समाजवादी किले का गौरव प्राप्त हुआ लेकिन बनवारी सिंह यादव के निधन के बाद सपाईयों को समाजवादी किला सम्भाल नहीं मिला। कहने को उसी समय में सैफई से बदायूं आने वाले धर्मेंद्र यादव बदायूं से दो बार सांसद बने और प्रदेश की सपा सरकार के दौरान धर्मेंद्र यादव जिले में विकास की लहर के साथ सांसद की जिम्मेदारी और दायित्व का आम आदमी को बोध कराया परंतु बनवारी सिंह यादव के निधन के बाद बदायूं के कुछ सपाईयों ने तब तक चैन की सांस नहीं ली जब तक धर्मेद्र यादव को बदायूं से विदा नहीं करा दिया और उनके बाद लोकसभा चुनाव में बदायूं के सपा सांसद आदित्य यादव की बदायूं से दिखने वाली दूरी ने बदायूं को निरीह और बेसहारा सपाइयों का ऐसा मैदान बना दिया है जहां तमाम प्रभावशाली सपाई अपनी ढपली अपना राग की राह पर चलते हुए किसी की बात सुुनने को तैयार नहीं है। समाजवादी राजनीति में मासिक समीक्षा बैठक का अपना महत्व होता है लेकिन बदायूं में सपा के तमाम पालनहार मासिक समीक्षा बैठक में सहभागिता करना अपना अपमान समझने लगे हैं जबकि कई पदाधिकारी अपने क्षेत्र की मासिक समीक्षा बैंठक अपने कैम्प कार्यालय अथवा मैरिज लान आदि में आयोजित करने में अपनी शान समझने लगे हैं और उनको समाजवादी पार्टी के कार्यालय मे आना अपनी तोहीन सी लगती है। ं