5:29 pm Wednesday , 12 February 2025
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दशरथ महल श्री अयोध्या

💐आज की कहानी💐

श्री अयोध्या में कनक भवन एवं हनुमानगढ़ी के बीच में एक आश्रम है जिसे बड़ी जगह अथवा दशरथ महल के नाम से जाना जाता है। वहाँ एक सन्त रहा करते थे जिनका नाम था श्री रामप्रसाद उस समय अयोध्या में इतनी भीड़ भाड़ नहीं होती थी श्रीरामप्रसाद जी ही उस स्थान के कर्ता धर्ता थे वहाँ मन्दिर है जिसमें पत्नियों सहित चारों भाई श्री राम, श्री लक्ष्मण, श्री भरत एवं श्री शत्रुघ्न जी एवं हनुमान जी की सेवा होती है। चूंकि सब के सब फक्कड़ सन्त थे …. तो नित्य मन्दिर में जो भी थोड़ा बहुत चढ़ावा आता था उसी से मन्दिर एवं आश्रम का खर्च चलता था।
प्रतिदिन मन्दिर का सारा चढ़ावा पलटू बनिए को भिजवाया जाता था जो उस धन से थोड़ा बहुत जो भी राशन आता था…. उसी का भोग-प्रसाद बनकर भगवान को भोग लगता था और जो सन्त आश्रम में रहते थे वे खाते थे।
एक बार प्रभु की ऐसी लीला हुई कि मन्दिर में कुछ चढ़ावा आया ही नहीं। अब इन साधुओं ने कुछ जोड़ा गांठा तो था नहीं कोई उपाय ना देखकर श्रीरामप्रसाद ने दो साधुओं को पलटू बनिया के पास भेज के कहलवाया कि आज तो कुछ चढ़ावा आया नहीं है अतः थोड़ा सा राशन उधार दे दो कम से कम भगवान को भोग तो लग जाए। पलटू बनिया ने यह कहकर मना कर दिया कि मेरा और महन्त जी का लेना देना तो नकद का है मैं उधार में कुछ नहीं दे पाऊँगा।

श्री रामप्रसाद जी को जब यह पता चला तो जैसी भगवान की इच्छा कहकर उन्होंने भगवान को उस दिन जल का ही भोग लगा दिया और सारे साधु भी जल पी के रह गए। प्रभु ने ऐसी परीक्षा ली कि रात्रि में भी जल का ही भोग लगा।
मन्दिर में नियम था कि शयन कराते समय भगवान को एक बड़ा सुन्दर पीताम्बर ओढ़ाया जाता एवं शयन आरती के बाद श्री रामप्रसाद जी नित्य करीब एक घण्टा बैठकर भगवान को भजन सुनाते थे। पूरे दिन के भूखे रामप्रसाद जी बैठे भजन गाते रहे और नियम पूरा करके सोने चले गए।
करीब आधी रात को पलटू बनिया के घर का दरवाजा किसी ने खटखटाया वो बनिया घबरा गया कि इतनी रात को कौन आ गया। आवाज सुनी तो पता चला कुछ बच्चे दरवाजे पर शोर मचा रहे हैं अरे पलटू… पलटू सेठ … अरे दरवाजा खोल…।
उसने खीझते हुए दरवाजा खोला कि बच्चे शरारत कर रहे होंगे जब उसने दरवाजा खोला तो देखा कि चार लड़के जिनकी अवस्था बारह वर्ष से भी कम की होगी चारों एक पीताम्बर ओढ़ कर खड़े हैं। उनकी छवि इतनी मोहक और लुभावनी थी कि ना चाहते हुए भी पलटू का सारा क्रोध प्रेम में परिवर्तित हो गया। वह आश्चर्य से पूछने लगा बच्चों …! तुम हो कौन और इतनी रात को क्यों शोर मचा रहे हो…?
बिना कुछ कहे बच्चे बोले *हमें रामप्रसाद बाबा ने भेजा है ये जो पीताम्बर हम ओढ़े हैं इसका कोना खोलो इसमें सोलह सौ रुपए हैं निकालो और गिनो।

ये वो समय था जब आना और पैसा चलता था सोलह सौ उस समय बहुत बड़ी रकम हुआ करते थे। जल्दी-जल्दी पलटू ने उस पीताम्बर का कोना खोला तो उसमें सचमुच चांदी के सोलह सौ सिक्के निकले। प्रश्न भरी दृष्टि से पलटू बनिया उन बच्चों को देखने लगा। तब बच्चों ने कहा इन पैसों का राशन कल सुबह आश्रम भिजवा देना।
अब पलटू बनिया को थोड़ी शर्म आई हाय ! आज मैंने राशन नहीं दिया लगता है महन्त जी नाराज हो गए हैं इसीलिए रात में ही इतने सारे पैसे भिजवा दिए।
पश्चाताप, संकोच और प्रेम के साथ उसने हाथ जोड़कर कहा बच्चों ! मेरी पूरी दुकान भी उठा कर मैं महन्त जी को दे दूँगा तो भी ये पैसे ज्यादा ही बैठेंगे। इतने मूल्य का सामान देते-देते तो मुझे पता नहीं कितना समय लग जाएगा।
बच्चों ने कहा ठीक है… आप एक साथ मत दीजिए थोड़ा थोड़ा करके अब से नित्य ही सुबह-सुबह आश्रम भिजवा दिया कीजिएगा… आज के बाद कभी भी राशन के लिए मना मत कीजिएगा।
पलटू बनिया तो शर्म के साथ बोला जैसी महन्त जी की आज्ञा इतना कह सुन के वो बच्चे चले गए लेकिन जाते-जाते पलटू बनिया का मन भी ले गए।

इधर सवेरे-सवेरे मंगला आरती के लिए जब पुजारी जी ने मन्दिर के पट खोले तो देखा भगवान का पीताम्बर गायब है। उन्होंने ये बात रामप्रसाद जी को बताई और सबको लगा कि कोई रात में पीताम्बर चुरा के ले गया जब थोड़ा दिन चढ़ा तो गाड़ी में ढेर सारा सामान लदवा के कृतज्ञता के साथ हाथ जोड़े हुए पलटू बनिया आया और रामप्रसाद जी के चरणों में गिरकर क्षमा माँगने लगा।

रामप्रसाद जी पूछें क्या हुआ… अरे किस बात की माफी मांग रहा है।
पर पलटू बनिया उठे ही ना और कहे महाराज रात में पैसे भिजवाने की क्या आवश्यकता थी… मैं कान पकड़ता हूँ आज के बाद कभी भी राशन के लिए मना नहीं करूँगा और ये रहा आपका पीताम्बर… वो बच्चे मेरे यहाँ ही छोड़ गए थे…. बड़े प्यारे बच्चे थे… इतनी रात को बेचारे पैसे लेकर आ भी गये… आप बुरा ना मानें तो मैं एक बार उन बालकों को फिर से देखना चाहता हूँ। रामप्रसाद जी ने वो पीताम्बर देखा तो पता चला ये तो हमारे मन्दिर का ही है अब वो पूछें कि ये तुम्हारे पास कैसे आया?
तब उस बनिया ने रात वाली पूरी घटना सुनाई।
अब रामप्रसाद जी भागे और मन्दिर जाकर भगवान के पैर पड़कर रोने लगे कि हे भक्त वत्सल…! मेरे कारण आपको आधी रात में इतना कष्ट उठाना पड़ा और कष्ट उठाया सो उठाया मैंने जीवन भर आपकी सेवा की …. मुझे तो दर्शन ना हुआ … और इस बनिए को आधी रात में दर्शन देने पहुँच गए।
जब पलटू को पूरी बात पता चली तो उसका हृदय भी धक् से होके रह गया कि जिन्हें मैं साधारण बालक समझ बैठा वे तो त्रिभुवन के नाथ थे… अरे मैं तो चरण भी न छू पाया। अब वे दोनों ही बैठ कर रोएँ।
इसके बाद कभी भी आश्रम में राशन की कमी नहीं हुई। आज तक वहाँ सन्त सेवा होती आ रही है। इस घटना के बाद ही पलटू बनिया को वैराग्य हो गया और यह पलटू बनिया ही बाद में श्री पलटूदास जी के नाम से विख्यात हुए।
श्रीरामप्रसाद जी की व्याकुलता उस दिन हर क्षण के साथ बढ़ती ही जाए और रात में शयन के समय जब वे भजन गाने बैठे तो मूर्छित होकर गिर गए। संसार के लिए तो वे मूर्छित थे किन्तु मूर्च्छावस्था में ही उन्हें पत्नियों सहित चारों भाइयों का दर्शन हुआ और उसी दर्शन में श्री जानकी जी ने उनके आँसू पोंछे तथा अपनी ऊँगली से इनके माथे पर बिन्दी लगाई जिसे फिर सदैव इन्होंने अपने मस्तक पर धारण करके रखा। उसी के बाद से इनके आश्रम में बिन्दी वाले तिलक का प्रचलन हुआ।

गूगल से साभार