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हरी मटर की आवक ज्यादा मंडी में दाम कम,घाटे में किसान- मौसम की मार गर्मी बढ़ने पर सूखने लगी मटर की फलियां

।—————————————-उझानी बदांयू 3 फरवरी।

किसानों की पहली पसंद हरी मटर ने इस बार उन्हें आर्थिक रूप से कमजोर कर दिया है। लगातार घट रहे दामों से किसानों की लागत भी नहीं निकल रही है। इससे किसानों में मायूसी छाई हुई है। किसानों का कहना है कि बाहरी व्यापारियों ने शुरुआती समय में जब कुछ ही जगह पर मटर तैयार हुई थी। उस समय व्यापारियों ने साठ रुपये प्रति किलो तक खरीदारी की। लेकिन अब जब सभी किसानों की फसल तैयार हुई तो न तो मंडी में व्यापारी आ रहे हैं और भाव भी 10 से 15 रुपये प्रति किलो ग्राम पर आ गया है। इससे किसान खासे परेशान हैं।
यहां किसान दो फसलों के चक्कर व अधिक मुनाफे के लिए अक्तूबर माह में ही हरी मटर की बुआई शुरू कर देते हैं। इससे किसान जनवरी माह तक मटर की तुड़वाई कर दोबारा से गेहूं या मूंग की फसल कर लेते हैं। लेकिन इस बार किसान अपने आप को ठगा सा महसूस कर रहे हैं। क्योंकि शुरुआती समय में जिन किसानों की फसल तैयार हो गई उन्हें करीब साठ रुपये प्रतिकिलो के हिसाब से दाम मिल गए। लेकिन जो फसल अब तैयार हुई है उसके तुड़ाई के भी दाम मिलने मुश्किल है।

अगर किसान मटर मंडी जाकर बेच रहे हैं तो उनकी लागत भी नहीं निकल रही है। किसानों का कहना है कि इस समय जिस मटर की फलियों की कीमत प्रति किलो चालीस रुपये होेनी चाहिए। वह इस समय 15 रुपये किलो बिक रही है। बाजार में भी अगर किसान मटर बेचने जा रहे हैं, तो इससे अधिक नहीं मिल पा रहा है। किसान हीरा लाल , महावीर सिंह, देवेन्द्र सिंह, आदि ने बताया कि इस बार शुरुआती समय में बाहरी व्यापारी मटर खरीदने आए। लेकिन तापमान में लगातार हो रही वृद्धि से वह भी आना बंद हो गए अब हालत यह है कि लागत निकालने में उनके पसीने छूट रहे हैं।
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किसान गंगा सिंह का कहना है कि एक झिल्ली मटर तोड़ने वाले मजदूर को 200 से लेकर 250 रुपये तक देना पड़ रहा है। जबकि पल्लेदार करीब पांच सौ रुपये प्रति व्यक्ति के हिसाब से ले रहे हैं। वहीं 15 रुपये प्रति झिल्ली अलग से लग रहा है। ऊपर से दो से तीन किलो प्रति झिल्ली तुलाई में काट लिया जाता है। इससे बेंचने पर लागत भी नहीं निकल रही है।
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किसान श्याम सिंह का कहना है कि शुरूआती समय में तापमान सही रहा। इससे मटर की फसल में अच्छी फलिया निकली। लेकिन लगातार तापमान के बढ़ने से पौधा व फलियां सूखने लगी। इससे पैदावार में कमी और ऊपर से दाम भी सही नहीं मिलने से घाटे का सौदा हो रहा है।—————-** राजेश वार्ष्णेय एमके