बसंत पंचमी के ही दिन 1970 में आचार्य वेदव्रत आर्य ने की थी स्थापना
बदायूं के ऐतिहासिक संस्कृत शिक्षा संस्थान का 55वां वार्षिकोत्सव महाविद्यालय परिसर में बड़ी ही धूमधाम के साथ मनाया गया। इस अवसर पर संस्थापक आचार्य वेदव्रत आर्य के निर्देशन में राष्ट्ररक्षा यज्ञ का आयोजन किया गया, यज्ञ के मुख्य यजमान वेदमित्र आर्य ने सपत्नीक यज्ञ में आहूतियां प्रदान कीं। उनके साथ विद्यालय स्टाफ व छात्र-छात्राएं आदि सभी लोग मौजूद रहे।
स्थापना दिवस के अवसर पर बोलते हुए संस्थापक आचार्य वेदव्रत आर्य ने कहा कि हमारा देश संस्कृत और संस्कृति के लिए पूरे विश्व में विख्यात है और हमारी इसी विरासत को पाने के लिए पूरे विश्व के लोग भारत की संस्कृति को अपनाने के लिए आतुर रहते हैं। आज के भौतिकवादी युग में इंसान तरक्की के नए-नए सोपान चढ़़ता जा रहा है लेकिन उसे मन की शांति नहीं मिल पा रही है। यदि मनुष्य उन्नति के साथ-साथ अपनी संस्कृति को भी अपनाता चले उसे उन्नति और शांति दोनों ही मिलेंगी। जो लोग इस बात को समझ जाते हैं वे आधुनिकता की होड़ से खुद को दूर रख भौतिक तथा पारलौकिक उन्नति के मार्ग को अपनाकर अपनी संस्कृति को संजोते हैं। हमारे संस्थान का उद्देश्य संस्कृत भाषा की उन्नति तथा भौतिक उन्नति के बीच सामंजस्य बिठाकर देश को नई दिशा में उच्चतर स्तर पर ले जाना है और इसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए हम लोग कार्य कर रहे हैं।
इस अवसर पर महाविद्यालय के प्राचार्य वेदमित्र आर्य ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि पिछले 55 वर्षों में हमारे इस संस्थान ने देश को न जाने कितने ऐसे विद्वान दिए हैं जिन्होंने देश को एक नई दिशा दिखाई है। आज भी हमारा उद्देश्य यही है कि भले ही हम भौतिक उन्नति उतनी न कर सकें लेकिन अपनी सांस्कृतिक उन्नति को कम नहीं होने देंगे।
महाविद्यालय के प्रवक्ता सर्वेश कुमार गुप्ता ने कहा कि हमारे ऋषि, मुनियों ने जो गं्रथ हमें दिए हैं उनमें सभी कुछ समाया हुआ है उनके अध्ययन से मनुष्य अपनी विरासत को संभालते हुए लौकिक एवं पारलौकिक उन्नति प्राप्त कर सकता है।
स्थापना दिवस पर प्रवक्ता शिवसिंह यादव, अंकिता गुप्ता, वेदवीर आर्य, वेदप्रिय आर्य, श्रीमती शकुन गुप्ता, गुरूकुल सूर्यकुण्ड के प्राचार्य वेदरत्न आर्य आदि ने भी संबोधित किया।
इस अवसर छात्र-छात्राओं के अलावा नगर अनेकोें गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे।