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एक राष्ट्र एक चुनाव के साथ एक राष्ट्र एक कर की आवश्यकता पर सोचे सरकार – सुधांशु गुप्ता

।***** उझानी बदांयू 31 जनवरी।

आने वाले केन्द्रीय बजट पर अपनी राय रखते एस्सल ओडियन पब्लिक स्कूल के प्रबंधक सुधांशु गुप्ता। केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए करदाता संख्या 10.4 करोड़ तक पहुँच गई है, जो 2014-15 में 5.7 करोड़ थी। यह वृद्धि भारतीय कर व्यवस्था की प्रगति को दर्शाती है, लेकिन इसी समय यह प्रश्न भी उठता है कि क्या यह समय नहीं है जब भारत के हर नागरिक के लिए “एक राष्ट्र, एक कर” की अवधारणा लागू की जाए?

भारत में आज कई चुनावों का आयोजन विभिन्न स्तरों पर होता है, और वर्तमान में “एक राष्ट्र, एक चुनाव” की चर्चा हो रही है। जब देश में हर चीज़ एकजुट हो रही है, तो यह भी समय है कि कर व्यवस्था को सरल और एकीकृत किया जाए। अलग-अलग राज्यों में विभिन्न प्रकार के करों की व्यवस्था, विभिन्न रेट्स और नियमों के कारण करदाताओं को भ्रम और कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

“एक राष्ट्र, एक कर” का अर्थ है कि देशभर में समान कर संरचना, एक ही दर और एक ही नियम लागू हों। इससे न केवल करदाताओं के लिए कर प्रणाली को समझना और पालन करना आसान होगा, बल्कि देश की आर्थिक व्यवस्था में भी पारदर्शिता और समानता आएगी। इसके अलावा, एक समान कर प्रणाली से राज्य सरकारों और केंद्र सरकार के बीच सहयोग को भी बढ़ावा मिलेगा और इससे कर चोरी पर भी काबू पाया जा सकेगा।

भारत में जीएसटी (वस्तु और सेवा कर) की शुरुआत ने इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया था, लेकिन अभी भी विभिन्न राज्यों में कुछ सुधार की आवश्यकता है। “एक राष्ट्र, एक कर” की नीति न केवल देश की वित्तीय स्थिति को मजबूत करेगी, बल्कि यह एक समावेशी और मजबूत राष्ट्र निर्माण की ओर भी कदम बढ़ाएगी।

आखिरकार, अगर हम “एक राष्ट्र, एक चुनाव” की अवधारणा को अपनाने जा रहे हैं, तो क्यों न हम कर प्रणाली को भी एकीकृत करें, ताकि प्रत्येक नागरिक को समान अवसर और समान कर लागू हो।