बदायूं की बात – सुशील धींगडा के साथ
देश की आजादी के बाद अधिकांश चुनावों में बदायूं का राजनेतिक जुडाव सत्ताधारी दल के साथ रहा लेकिन विकास की राह नहीं बन पाई और ना ही पिछडापन दूर हुआ। सच तो यह है कि विकास क्या होता है और हमारे पालनहार कबख् कैसे और कहां विकास करा सकते हैं इसका अहसास बदायूं वालों को तब हुआ जब धर्मेंद्र यादव बदायूं के सांसद बने जिसके उपरांत जनपद में विकास की वह लहर चली जिसमें बदायूं को ओवरब्रिज, मेडीकल कालिज, वाईपास,, बरेली मार्ग, दर्जनों डिग्री कालिज, दर्जनों इंटर कालिज, महिला महाविद्यालय, आटोडोरियम, गांव – गांव तक सडक और विद्युतीकरण देखने को मिला लेकिन अपनों की बिछाई राजनतिक शतरंज में धर्मेंद्र यादव के बदायूं से दूर जाने फिर अधेरा सा दिखाई देने लगा है और आम आदमी को इस बात का अहसास होने लगा कि अब आम आदमी बात सुुनने वाला फिर राजनेतिक मैदान में कोई नहीं है। सासंद भले सपा के हों लेकिन हालत पर निगाह डालने की फुरसत उनके पास नहीं है। जिले में सपा के तीन विधायक हों पर असलियत क्या है किसी से छिपी नहीं हैं। कहने को भाजपा के भी तीन विधायक हैं लेकिन उनमें से जनता क्या कहें जो सब कुछ होते हुए बदायूं को लम्बी दूरी की नियमित यात्री ट्रेन तो दूर देश और प्रदेश राजधानी को बदायूं रेलमार्ग से जुडवाने में पूरी तरह विफल नजर आ रहे हैं।