8:07 pm Thursday , 30 January 2025
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सच्ची कथा : उपहार- मिष्ठान का डिब्बा बेटे के हाथ पर रखा तिलक कर दिया

सच्ची कथा : उपहार
मेरे मित्र के बेटे को विवाह का एक रिश्ता आया था बिलारी से ! आज बेटी देखने का कार्यक्रम था ! बेटी के पिता एक प्राइवेट कंपनी में काम करते थे वमुश्किल एक घर छोटा सा बना लिया था दो कक्षों का ! सुमित मेरे पड़ोस के मित्र जयवीर का बेटा बचपन से ही आर्य संस्कारशाला में वेद मन्त्रों को सुनकर के बड़ा हुआ था, मित्र के आग्रह पर मैं भी गया ! कार्यक्रम उन्होंने अपने घर पर ही रखा था ! यह देखकर मैं थोड़ा चौका और फिर मैंने पूछा बेटी देखने सीधे बेटी के घर कब आते हैं ? कोई होटल कोई रिजॉर्ट या धर्मशाला बुक कराते हैं ! चलो अच्छा है व्यर्थ का खर्चा बचेगा ! आए हो तो कुछ उपहार भी लाए हो ? उन्होंने कहा कि लाए है ! बेटी को देखा नहीं और गोद भराई पक्की ? मित्र की पत्नीबोली फोटो देख लिया है बेटी का हम सबको पसंद है ! बेटी के पिता बड़े सज्जन और धार्मिक वृत्ति के दिख रहे थे । थोड़ी सी कमाई और उस पर परिवार की बड़ी जिम्मेदारियां ! मैं समझ गया कि बेटी के पिता रामवीर सिंह से बात करनी चाहिए मैंने उनको एकांत में ले जाकर बात की – आपका क्या मन है ? उन्होंने कहा कि बेटी पसंद कर ली जाए तो उसकी गोद भराई की रस्म भी होगी ही किंतु मैं चाहता हूँ तिलक उत्सव भी यहीं हो जाता तो मुझे सुविधा हो जाती… तब मैंने कहा कि देखो बेटी को तो अब पास ही समझो तिलक की तैयारी भी कर लो क्योंकि इससे तुम्हारा भी खर्च बचेगा और उनका भी ! दिखाबे में कुछ नहीं रखा है जब तुम दो परिवार आपस में मिल रहे हो तो दोनों एक दूसरे के साथ दिल से जुड़ो . ! तुम्हारी समस्या उनकी समस्या उनकी समस्या तुम्हारी समस्या ! तुम्हारी खुशी उनकी खुशी उनकी खुशी तुम्हारी खुशी ! और फिर तुम अपनी बेटी दे रहे हो इससे बड़ी दौलत और उपहार भला क्या हो सकता है ? उनकी आंखें भर आई ! मैंने बेटी को देखा तो कहा बेटी तुम यह मत सोचना कि तुम्हें देखने आए हैं पहला हक तुम्हारा है तुम अपने होने वाले पति को देखो और पास करो बेटी सर झुका कर मुस्कुरा दी ! बेटी को पास कर दिया गया उपहार दिए गए ! सोने की अंगूठी और पाजेब पांच साड़ियां और भी कुछ फल मिठाइयां ! हम सभी ने भी अपने उपहार दिए ! और उसके बाद मैंने झटपट पूजा की तैयारी की और बस 20 मिनट में ही तिलक उत्सव संपन्न कर दिया ! बेटी के पिता रामवीर सिंह जी ने ₹1100और एक मिष्ठान का डिब्बा बेटे के हाथ पर रखा तिलक कर दिया सबको भोजन कराया और विदा की । हम सकुशल घर आ गए सोचता हूँ क्या यह विवाह का उत्तम ढंग नहीं है ?
आचार्य संजीव रूप