शेरे खुदा मौला अली के योमे विलादत के मुबारक मौके पर महफ़िल आयोजित हुई
बदायूँ | हजरत अली के यौमे विलादत पर महफिल का आयोजन किया गया। शायरों ने बेहतरीन कलाम पेश कर श्रोताओं से खूब वाहवाही हासिल की। वहीं, घरों में रातभर ज़िक्र-ए-अली का सिलसिला चलता रहा। शेरो शायरी की महफिल भी सजाई गई। शहर के मोहल्ला सय्यदबाड़ा स्थित इमामबाड़ा मुत्तक़ीन में जशन ए हैदर ए करार शीर्षक से सजी महफिल की अध्यक्षता श्री अनवर आलम व सय्यद जाबिर ज़ैदी तथा संचालन डा. ग़ुलाम अब्बास ने किया। शुरुआत करते हुए शान सल्लाहमऊ ने पढ़ा…महबूबे किबरिया ने मौला किसे बनाया, अब तक गदीरे खूम का मैदान बोलता है। ज़ैनुल इबा ज़ैदी ने कहा…अली की मदहा ख्वानी मुनहासीर किया एक आयत पर, कुरान पाक का एक-एक सूरह बोल उठेगा। कैफ़ी ज़ैदी ने कहा… यूं नमूदार हुए…ख़ुदा के घर में जब मुश्किल कुशा आया जमाने का, खुला एक और दरवाजा इमामत के घरानों का। मोहम्मद हुसैन ने फरमाया…मेरे लबों पा आज कसीदा उसी का है, जिस के बगैर रंगे सुखन फीका फीका है। डॉ कमर अब्बास ने पढ़ा…कैद कुछ नहीं है दोस्तो अपने और पराये की यहां, दर पा जो अली के आ गया साहिबे कमाल हो गया। मिन्हाल ज़ैदी ने पढ़ा…इश्के अली जो दिल में बसाया ना जाएगा, महशर के रोज खुद को बचाया ना जाएगा। महफिल में इनके अलावा अनफ रिज़वान, मुशर्रफ हुसैन, जुनैद अब्बास, रज़ा ज़ैदी, डॉ ऐहसान रज़ा, कम्बर अब्बास आदि शायरों ने भी अपना कलाम पेश किया।