10:18 am Sunday , 2 February 2025
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ठाकुर जी

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*_ठाकुरजी! और “गुड़ का भोग “_*
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*_नंदगांव से थोड़ी दूर एक छोटे से गांव में छज्जूमल नाम का एक गुड़ बेचने वाला- अपनी पत्नी और दो बेटों के साथ रहता था।_*
*_उसकी पत्नी हर रोज गोपाल जी को भोग लगाती- आरती करती,और उनका पूरा ध्यान रखती थी।_*
*_उधर छज्जूमल दूर- नंदगांव में जाकर गुड़ बेचता था। इसी तरह उनकी जिंदगी अच्छे से चल रही थी।_*
*_उसके बेटे बहुत मेहनती और नेक थे।_*
*_परंतु दुर्भाग्यवश छज्जूमल की पत्नी अचानक चल बसी।_*
*_छज्जूमल बहुत उदास रहने लगा। फिर भगवान् की जो इच्छा- मान कर- गुड़ बेचने नंदगांव वापस जाने लगा।_*
*_उसके बेटे उसको समझाते बाबा! अब हम अच्छा कमा लेते हैं! आप अब घर बैठें- परन्तु छज्जूमल ना माना।_*

*_उसकी पत्नी रोज गोपाल जी को भोग लगाती थी।_*
*_लेकिन उसको तो भोग लगाना आता नहीं था।_*
*_परंतु अब थोड़ा सा गुड़,तुलसी पत्र के साथ ठाकुर जी के आगे- श्रद्धापूर्वक रख देता- ठाकुर जी तो मीठे के शौकीन! उनको तो गुड़ खाने का चस्का लग गया।_*
*_अब छज्जूमल, रोज नंदगांव जाने से पहले गोपाल जी को- श्रद्धापूर्वक थोड़ा सा गुड़ का भोग लगा देता था।_*
*_एक दिन दोनों बेटे बोले- बाबा घर की मरम्मत करवानी हैं- तो थोड़ा सा सामान इधर-उधर करना पड़ेगा।_*
*_बाबा बोले ठीक है,तो बच्चों ने गोपाल जी को भी अलमारी में- भूलवश रख दिया।_*
*_घर का काम शुरू हो गया- पर अब गोपाल जी को गुड़ का भोग ना लगता।_*
*_छज्जूमल आज रोज की तरह नंदगांव में गुड़ बेचने गया- रास्ते में थोड़ा सा विश्राम करने के लिए एक वृक्ष के नीचे बैठ गया।_*

*_ठंडी ठंडी हवा चल रही थी, तो छज्जूमल कि आंख लग गई।_*
*_तभी उसे लगा- कि कोई उसे उठा रहा है- और कह रहा है- बाबा! आज गुड़ नही दोगे।_*
*_छज्जूमल ने एक दो बार तो अनसुना कर दिया- उसे लगा कि कोई सपना है- पर जब उसे कोई लगातार हिलाता जा रहा था- और बोल रहा था…!_*
*_तो अचानक वह उठा- तो देखता है- कि 6-7 साल का बालक उससे कह रहा है- कि बाबा! आज गुड़ नही दोगे।_*
*_छज्जूमल मन मे सोचने लगा- कि मैंने तो इस बालक को कभी गुड़ ना दिया- फिर उसने सोचा कि गांव में ही किसी का बच्चा होगा।_*

*_छज्जूमल ने कहा हां बेटा ले लो! तो उसे थोड़ा सा गुड़ दे दिया।_*
*_गुड़ लेकर वह बालक गुड़ को मुंह में डालकर- आहा आहा मीठा-मीठा कह कर वहां से भाग गया।_*
*_अब तो रोज ही वह बालक छज्जूमल को मिलता- उनसे गुड़ लेता और नाचता गाता! मीठा-मीठा कह कर भाग जाता।_*
*_छज्जूमल भी,बच्चा समझकर उसको रोज गुड़ दे देता।_*
*_अब जब घर का काम पूरा हो गया- तो उस दिन घर में हवन पूजन रखा गया।_*
*_छज्जूमल उस दिन गुड़ बेचने न जा सका।_*
*_परंतु वह बालक तो अपने समय पर उस जगह पहुंच गया। अब छज्जूमल वहां ना आया तो:_*
*_बालक ने तो घर जाकर मैया की जान ही खा ली, और- “ता ता थैया ” मचाने लगा, बोला मुझे तो गुड़ ही चाहिए !_*
*_मैया ने बहुत समझाया बर्फी,मिठाई सब लाकर दिए – लेकिन वह तो कहता- मैं तो गुड़ ही खाऊंगा।_*
*_मैया से बालक का रोना सहन न हुआ।_*
*_और वह बालक से छज्जूमल के घर का पता पूछते-पूछते उसके घर पहुंच गई।_*
*_मैया! वहां जाकर कहती है, बाबा मेरे बालक को तो आपने गुड़ की आदत डाल दी- आज आप आए नहीं ना तो गुड़ खाए बिना- वह मान ही नहीं रहा।_*
*_अब तो छ्ज्जूमल को उस बालक पर बड़ा प्यार आया- उसने उसको अपनी गोद में बिठाया- और गोदी में बिठा कर गुड़ खिलाने लगा।_*
*_पता नहीं क्यों उस बालको गुड़ खिलाते खिलाते- छज्जूमल की आंखों में अश्रु धारा बह निकली।_*
*_हृदय में अजीब सी हलचल होने लगी। गुड़ खाकर बालक मीठा मीठा कह कर अपने घर चला गया।_*
*_हवन पूजन के बाद में, फिर गोपाल जी की मूर्ति को रखा गया।_*
*_अगले दिन छज्जूमल नियम से गोपाल जी को गुड़ का भोग लगाकर काम पर चला गया।_*
*_रास्ते में उसी जगह पर रुका! अब तो उसे भी उस बालक को गुड़ खिलाने की जल्दी थी।_*
*_परंतु वह बालक आया ही नहीं..! ऐसे ही तीन- चार दिन बीते- तो उसका मन बहुत बेचैन हुआ- कि कहीं बालक बीमार तो नहीं हो गया।_*
*_उसने गांव में जाकर सबको बालक के बारे में पूछा, तो सब ने कहा ऐसा तो यहां कोई भी बालक नहीं रहता।_*
*_वह हैरान परेशान होकर घर पहुंचा। घर पहुंच कर जब वह मंदिर में बैठा- और गोपाल जी की तरफ देखा- तो वह मंद- मंद मुस्कुरा रहे थे।_*
*_जैसे वह कह रहें हो, बाबा जी !मैं वही बालक हूं..! छज्जू मल का माथा ठनका- और वह सोचने लगा- कि यह तो साक्षात गोपाल जी मुझसे गुड़ खाने आते थे।_*
*_वह कहने लगे, हे! गोपालजी! धन्य हो आप!_*
*_गोपाल जी की ओर देख के उसकी आंखों में अश्रु धारा बहने लगी।_*

*_🌸 जय श्री राधे 🌸_*

*गूगल से साभार*