🪴””””””””””””””””””””””””””””🪴
🌹 *_”ध्यान “- “Meditation”_* 🌹
🪴””””””””””””””””””””””””””””🪴
🌹 *_”ध्यान ” सबसे सरल है, और “ध्यान ” सबसे कठिन भी है।_*
🌹 *_”ध्यान शून्य भी है, और “ध्यान ” शिखर भी है।_*
🌹 *_”ध्यान “आदि भी है- और “ध्यान “अंत भी है।_*
👉🏻 *_पर ध्यान किया नहीं जाता,ध्यान तो खुद- ब-खुद, घटित हो जाता है।_*
👉🏻 *_क्योंकि जहां ‘करने’ का प्रयास आ गया,तो वो ध्यान क्या हुआ..?_*
👉🏻 *_जैसे रास्ते से कोई खूबसूरत गाड़ी तेज स्पीड में हमारी आंखों के सामने से निकल जाती है! और हम कुछ क्षण, यां सेकंड के चौथे भाग के बराबर ही उसे देखते रह जाते हैं। यानी कि 1 सेकंड के चौथे भाग के समय जितना, हमने अपनी आखों से देखा और उतने ही समय के लिए ही हमारा ध्यान- घटित हुआ था।_*
👉🏻 *_यकीन मानिए, इस दरिमयान हमारे विचारों की गति इतने ही समय के लिए थम सी जायेगी। मानो- “तुरीय चेतना” (चतुर्थ-चेतना ) में चली गई हो! “यही ध्यान है ” !_*
👉🏻 *_किसी से बात करते समय- उसकी आंखों में आंखे- डालते हुए एक एक शब्द पर पूरा फोकस करते हुए- बातें करें! हम जितने समय ऐसे बातें करेंगे, उतने समय के लिए ही हमारा ध्यान हो जायेगा।_*
👉🏻 *_किसी मधुर या मन पसंद संगीत को पूर्ण एकाग्रता के साथ सुने, एक एक शब्द पर ध्यान देकर,और संगीत का आनंद लेकर- यकीन मानिए- हमारे मस्तिष्क में विचारों का प्रवाह, उतने समय के लिए थम जाएगा- और हम वर्तमान का आनंद उठा रहे होगे। यही ध्यान होगा।_*
👉🏻 *_आप लेटे हुए हैं या बैठे हैं। अपने नाक के द्वारा- आ और जा रही सांस को महसूस करें।_*
*_सांस कैसे जा रही है- और कैसे आ रही है, उस पर पूर्ण ध्यान दें। जितना समय हम करेंगे, उतने समय के लिए हमारा ध्यान- “घटित” हो जाएगा।_*
👉🏻 *_हम कहीं पार्क या खुली हवा में टहल रहे हैं। हवा के- “त्वचा ” के साथ स्पंदन को महसूस करें। एक ठंडक यां गर्मी का एहसास होगा।_*
*_उस पर ध्यान लगाएं,यही तो ध्यान है।_*
*_”यही तो वर्तमान है “!_*
*_उपरोक्त में, हमने मनुष्य की पांचों इंद्रियां आंखे,जीभ,कान,नाक और त्वचा के साथ ध्यान करने की विधि जानी है। जिसका उद्देश्य बस इतना है,वर्तमान में रहना और विचारों के प्रवाह को थामना,कम करना या रोकना।_*
*_यानी होश में आने का प्रयास करना।_*
*_इस कोर्स में,जब कोई मास्टर बन जाता है! परिपक्कव हो जाता है!_*
*_उठते,बैठते,सोते हुए वर्तमान में समभाव में जीने लगता है- तो एक दिन हम पूर्ण होश में आ जाते हैं! तब इसी ध्यान में समाधि घटित होती है।_*
*_जिस से छठी इंद्री, जिसको- “थर्ड आई ” भी कहते हैं, जागृत हो जाती है। यही ध्यान का शिखर होता है।_*
*_ध्यान के दौरान हम विचारों को कैसे रोक सकते हैं…..?_*
*_पहले तो ये बात दिमाग से निकाले की ध्यान से विचार चले जायेंगे।_*
*_क्योंकि जब विचार ही नही होगा तो ध्यान कैसे करेंगे?_*
*_आजकल कुछ लोग- योग को तोड़ मरोड़कर पेश करते है। कुछ महीने या सालों का कोर्स करके- सर्टिफिकेट पा लेते है- और दूसरों को सिखाने लगते है।_*
*_इन्होंने तो योग को योगा भी कहना शुरू कर दिया। मतलब ही बदल दिया। और अब ऐसे ही लोग सिखा रहे है कि विचार को कैसे रोके ताकि ध्यान कर सके?_*
*_बड़ी अजीब बात है। पहले तो हम यह समझें- कि ध्यान तो अभी भी लग रहा है।_*
*_ध्यान अभी चल रहा है- हम ध्यान से इस उत्तर को समझ रहे हैं। यह ध्यान ही तो है। बस अगर कुछ करना है तो उस ध्यान को केंद्रित करना है। उसे केंद्रित करना है। हम बाहर निकले तो हमें सूर्य की किरणें मिलेगी।_*
*_उस किरण में- हम कागज रखें। उस कागज को कुछ नही होगा।_*
*_लेकिन जब हम उसकी किरणों को एक जगह कांच से उस कागज पर केंद्रित कर देंगे- तो वह कागज जल जाएगा। जल जाएगा वो कागज। फर्क यही है। पहले किरणे केंद्रित नही थी- और अब केंद्रित है। केंद्रित होते ही ऊर्जा सक्रिय हो गयी। ऊर्जा के सक्रिय होते ही कागज जल गया। परिणाम घटित हो गया।_*
*_ऐसे ही हमारा ध्यान है- यह अभी भी लग रहा है- लगना भी चाहिए।_*
*_परन्तु अब इसे केंद्रित करना है- केंद्रित कर लेंगे- तो ऊर्जा सक्रिय हो जाएगी। ऊर्जा सक्रिय हौने से फिर हम कुछ भी परिणाम घटित कर लेंगे।_*
*_इसलिए ध्यान मत लगाओ- बल्कि ध्यान को केंद्रित करें। क्योंकि ध्यान तो लग ही रहा है।_*
*_अब प्रश्न आता है कि विचार को कैसे रोके?_*
*_क्यों रोकना है- विचार को….? क्या दुश्मनी है- बेचारे से….? उसने क्या बिगाड़ दिया…..?_*
*_विचार तो ध्यान का रूप है। जब तक विचार है-तभी तक ध्यान है! यदि विचार ही नही होगा- तो ध्यान किस पर केंद्रित करेंगे?_*
*_अब हम कहेंगे की ईश्वर पर।_*
*_ईश्वर की भी तो कल्पना करनी होगी। तभी तो उनका ध्यान होगा। और हम कहते हें कि विचार को रोके कैसे…?_*
*_मत रोको! आने दो! बिना विचार के ध्यान नही होगा। यदि विचार ही नही रहा- तो भावना कैसे होगी…..?_*
*_अगर शांति की भावना भी चाहिए- तो विचार होना आवश्यक है। बिना विचार के तो शांति भी नही मिलेगी। क्योंकि बिना विचार के कोई भावना नही होती।_*
*_परन्तु याद रहे,कौरवों को पांडवो ने मारा था। लेकिन इसका अर्थ यह नही था- कि पांडव अमर हो गए।_*
*_मरना तो पांडवो को भी पड़ा। अगर बुराई मरी है- तो अच्छाई को भी खत्म होना ही है।_*
*_नकारत्मकता खत्म हुई है- तो सकारत्मकता भी खत्म होगी- निश्चित है।_*
*_प्रकृति सामंजस्य में रखती है, सबको!_*
*_इसलिए जब हम नकारात्मक विचार पर- सकारात्मक को हावी कर लेंगे- तो ध्यान अब सकारत्मक विचार पर ही रहेगा।_*
*_नकारात्मक चला जायेगा। जाना पड़ेगा, लेकिन,ये सकारात्मक विचार भी खत्म होगा- यह खुद ही खत्म होगा। इसे रोकना मत। इसे रोकोगे तो गड़बड़ हो जाएगी। क्योंकि जब तक यह खत्म होगा- तब तक हम दृष्टा भाव मे रहेगे। हम सिर्फ देखते रहेगे। करेंगे कुछ नही। सब होगा- खुद ही होगा।_*
*_इसलिए विचार रोकना हमारे लिए नही है। हमें सिर्फ एक विचार को चुनकर उस पर केंद्रित होना है। ध्यान को केंद्रित करना है।_*
*_यदि विचार नही आने दोगे- तो ध्यान ही नही होगा, और यह तभी होगा- जब तुम ध्यान की अंतिम अवस्था मे आ जाओगे, इसलिए शुरुआत में ध्यान को केंद्रित करो।_*
*_सकारत्मकता पर केंद्रित करो। बाकी सब खुद ही होगा। हमें कुछ नही करना।_*
*_ध्यान से बाहर आओ- योगा टीचर से नही बल्कि योगी से ध्यान केंद्रित करना सीखो।_*
*गूगल से साभार*