5:25 am Thursday , 16 January 2025
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वृन्दावन की माटी

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*_🪴 “वृन्दावन की माटी” 🪴_*
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*_शोभा नाम की एक औरत थी।_*
*_उसकी बड़ी बह वृंदावन में रहती थी। एक बार वह उसको मिलने के लिए वृंदावन गई।_*
*_शोभा जो कि काफी पैसे वाली औरत थी। लेकिन उसकी बहन कीर्ति जो कि वृंदावन में रहती थी, ज्यादा पैसे वाली नहीं थी।_*
*_लेकिन दिल की वह बहुत अच्छी थी या यह कह सकते हैं कि दिल कि वह बहुत अमीर थी। उसका पति मिट्टी के घड़े बनाने का काम करता था।_*
*_शोभा काफी सालों बाद अपनी बहन को मिलकर बहुत खुश हुई। लेकिन उसमें थोड़ा सा अपने पैसे को लेकर घमंड भी था!_*
*_वो कीर्ति के घर हर छोटी बात पर उसकी चीजों में से नुक्स निकालती रहती थी।_*
*_लेकिन कीर्ति जो थी, उसको कुछ ना कह कर बस यही कह देती जो बिहारी जी की इच्छा!_*
*_लेकिन शोभा हर बात में उस को नीचा दिखाने की कोशिश करती।_*
*_कीर्ति ने अपनी तरफ से अपनी बहन की आवभगत में कोई कमी ना छोड़ी, उसने अपनी बहन का पूरा ख्याल रखा उसने उसको वृंदावन के सारे मंदिर के दर्शन करवाए- और उनकी महिमा के बारे में बताया!_*
*_शोभा यह दर्शन करके खुश तो हुई और उसने महिमा भी सुनी लेकिन उसका इन चीजों में इतना ध्यान नहीं था बस दर्शन करके वापस आ गई।_*
*_उसको वृंदावन में रहते हुए काफी दिन हों गए।_*
*_एक दिन वह अपनी बहन से बोली: कि कीर्ति दीदी! अब बहुत दिन हो गए आपके घर रहते हुए- अब मुझे अपने घर को जाना चाहिए!_*
*_तो कीर्ति थोड़ी सी उदास हो गई- और बोली बहन कुछ दिन और रुक जाओ।_*
*_लेकिन शोभा बोली नहीं काफी दिन हो गए हैं, मुझे आए हुए- घर में मेरा पति और बच्चे अकेले हैं- उनको सास के सहारे छोड़ कर आई हूँ! अब मैं फिर कभी आऊंगी।_*
*_जब शोभा वापिस जाने लगी- तो कीर्ति- जो कि शोभा की बड़ी बहन थी- उसने अपनी छोटी बहन को उपहार स्वरूप मिट्टी का घड़ा दिया।_*
*_घड़े को देखकर शोभा हैरान सी हो गई- और मन में सोचने लगी क्या कोई उपहार में घड़ा भी देता है…?_*
*_लेकिन कीर्ति के बार-बार आग्रह करने पर उसने अनमने मन से घड़ा ले लिया।_*
*_जब शोभा जाने लगी- तो उसकी बहन कीर्ति की आँखों में आँसू थे!_*
*_लेकिन शोभा उससे नजरें चुराती हुई जल्दी-जल्दी वहाँ से चली गई।_*
*_सारे रास्ते शोभा यही सोचती रही- कि मैं घर जाकर अपनी सास और पति को क्या बताऊँगी- कि मेरी बड़ी बहन ने मुझे घड़ा उपहार के रूप में दिया है! तो उसको इस बात से बहुत लज्जा आ रही थी।_*
*_तो उसने सोचा कि मैं घर में जाकर झूठ बोल दूँगी- कि घड़ा मैं ही खरीद कर लाई हूँ- मुझे तो मेरी बहन ने काफी कुछ दिया है।_*
*_इसी तरह सोचती सोचती वह घर पहुँची- और उसने घर जाकर घड़ा अपनी रसोई के ऊपर रख दिया।_*
*_उसको मन में बहुत ही गुस्सा आ रहा था कि मेरी बहन क्या इस लायक भी नहीं थी-कि अपनी छोटी बहन को कुछ पैसे उपहार में दे सके।_*
*_एक घड़ा सा पकड़ा दिया है।_*
*_अब उसको अपने घर आए- काफी दिन हो गए।_*
*_गर्मियों के दिन थे- तभी उनके गाँव में पानी की बहुत दिक्कत आने लगी!_*
*_कुएँ में,नदियों में पानी सूख गया- उसके गाँव के लोग दूर-दूर से पानी भर कर लाते थे- पैसे होने के बावजूद भी शोभा को पानी के लिए बहुत दिक्कत हो रही थी।_*
*_एक दिन शोभा बहुत दूर जाकर कुए से पानी भर रही थी, वहाँ पर और भी औरतें पानी भरने के लिए आई हुई थी- तो जल्दी पानी भरने की होड़ में धक्का-मुक्की में शोभा का घड़ा टूट गया।_*
*_शोभा दूसरी औरतों पर चिल्लाने लगी- यह आपने क्या किया बड़ी मुश्किल से तो मैंने पानी भरा था आप लोगों ने धक्का-मुक्की करके मेरा घड़ा ही तोड़ दिया।_*
*_वह उदास मन से घर को आई!_*
*_अब उसके पास कोई और दूसरा बर्तन भी नहीं था पानी भरने के लिए!_*
*_तभी अचानक उसको अपनी बहन के दिए हुए घड़े की याद आई!_*
*_तो उसने रसोई के ऊपर से घड़ा उतारा- और फिर चल पड़ी- बड़ी दूर पानी भरने के लिए जब कुएँ पर पहुँची- तब भीड़ कम हो चुकी थी।_*
*_वह घड़े में पानी भरकर घर लाई- कि तभी उसका पति खेतों से वापस आया!_*
*_गर्मी अधिक होने के कारण वह गर्मी से बेहाल हो रहा था!_*
*_वह आकर कहता है- शोभा क्या घर में पानी है।_*
*_क्या एक गिलास पानी मिलेगा…..?_*
*_तो शोभा ने कहा हाँ मैं अभी भरकर लाई हूँ। तभी उसने उस घड़े में से एक गिलास पानी भरकर अपने को पति को दिया!_*
*_गले में से पानी उतरते ही उसका पति एकदम से उठ खड़ा हुआ और बोला यह पानी तुम कहाँ से लाई हो- तो शोभा एकदम से डर गई कि शायद मुझसे कोई भूल हो गई है!_*
*_तो उसने डरते हुए, पूछा.. क्यों क्या हुआ ? तो उसने कहा यह पानी नहीं यह तो अमृत लग रहा है।_*
*_इतना मीठा पानी तो आज तक मैंने नहीं पिया। यह तो कुएँ का पानी लग ही नहीं रहा यह तो लग रहा है किसी मंदिर का अमृत है।_*
*_तो शोभा बोली मैं तो कुएँ से ही भरकर लाई हूँ। यह देखो घड़ा भरा हुआ- उसके पति ने कहा यह घड़ा तुम कहाँ से लाई थी।_*
*_उसने कहा: जब मैं वृंदावन से वापस आ रही थी- तो मेरी बड़ी बहन ने मुझे दिया था! यह सुनकर उसका पति चुप हो गया।_*

*_अब शोभा का पति बोला: कि मैं थोड़ी देर के लिए बाहर जा रहा हूँ- तब तक तुम भोजन तैयार करो।_*
*_तो शोभा ने उसी घड़े के जल से दाल चावल बनाये- घड़े के पानी से दाल चावल बनाने से उसकी खुशबू पूरे गाँव में फैल गई!_*
*_गाँव के सब लोग सोचने लगे कि आज गाँव में- किसके यहाँ उत्सव है- जो इतनी अच्छी खाने की खुशबू आ रही है!_*
*_सब लोग एक- एक करके खुशबू को सूँघते हुए शोभा के घर तक आ पहुँचे!_*
*_साथ में उसका पति भी था- तो उसने आकर पूछा कि आज तुमने खाने में क्या बनाया है…? तो उसने कहा: कि मैंने तो दाल और चावल बनाए हैं- तो सब लोग हैरान हो गए की दाल चावल की इतनी अच्छी खुशबू।_*
*_सब लोग शोभा का मुँह देखने लगे- कि आज तो हम भी तेरे घर से दाल चावल खा कर जायेंगे।_*
*_उसने किसी को मना नहीं किया और थोड़े थोड़े दाल चावल सब को दिए।_*
*_दाल चावल खाकर सब लोग उसको कहने लगे यह दाल चावल नहीं ऐसे लग रहा है- कि हम लोग अमृत चख रहे हैं।_*
*_तो शोभा के पति ने पूछा- कि तुमने आज दाल चावल कैसे बनाये।_*
*_उसने कहा कि मैंने तो यह घड़े के जल से ही दाल चावल बनाए हैं।_*
*_शोभा का पति बोला: तेरी बड़ी बहन ने तो बहुत अच्छा उपहार दिया है!_*
*_अगले दिन जब शोभा घड़ा भरनेें के लिए जाने जाने लगी- तो उसने देखा घड़ा तो पहले से ही भरा हुआ है- उसका जल वैसे का वैसा है जितना वो कल लाई थी!_*
*_उसने उसमें से खाना भी बनाया था, जल भी पिया था, लेकिन घड़ा फिर भरा का भरा था।_*
*_शोभा एकदम से हैरान हो गई यह कैसे हो गया।_*
*_तभी अचानक से- उसी दिन उसकी बड़ी बहन कीर्ति- उसको मिलने के लिए उसके घर आई!_*
*_तो शोभा अपनी बहन को देख कर बहुत खुश हुई। उसको गले मिली,और उस को पानी पिलाया- ओर उसने अपनी बहन को कहा: कि दीदी यह जो तूने मुझे घड़ा दिया था ना! यह तो बहुत ही चमत्कारी घड़ा है!_*
*_मैंने तो इसे तुच्छ समझ कर रसोई के ऊपर रख दिया था।_*
*_लेकिन कल,जब से मेने इसमें जल भरा है- तब से यह जल से भरा हुआ है,खाली नही हो रहा है।_*
*_इसका जल अत्यंत मीठा है! और इसके जल से मैंने जो दाल और चावल बनाए,वो अमृत के समान स्वादिष्ट बने थे।_*
*_उसकी बहन बोली: अरी ! ओ मेरी भोली बहन!_*
*_क्या तू नहीं जानती कि यह घड़ा ब्रज की रज- यानी वृंदावन की माटी से बना है- जिस पर साक्षात किशोरी जू और ठाकुर जी नंगे पांव चलते हैं- उसी रज से यह घड़ा बना है!_*
*_यह घड़ा नहीं साक्षात किशोरी जी और ठाकुर जी के चरण ही तुम्हारे घर पड़े हैं।_*
*_किशोरी जी और ठाकुर जी का ही स्वरूप तुम्हारे घर आया है।_*
*_यह सुनकर उसकी बहन अपने आप को कोसती हुई- और शर्मिंदा होती हुई -अपनी बहन के कदमों में गिर पड़ी,और बोली मुझे क्षमा कर दो, जो मैं वृंदावन की रज (माटी ) की महिमा को न जान सकी। जिसकी माटी में इतनी शक्ति है- तो उस बांके बिहारी और लाडली जू मे कितनी शक्ति होगी। मैं अज्ञानी मूर्ख ना जान सकी।_*
*_मुझे ब्रज की रज की महिमा और उसकी महत्वता का पता नही था।_*
*_मुझे क्षमा कर दो, तो उसकी बहन उसको उठाकर गले लगाती हुई बोली: की बहन किशोरी जी और ठाकुर जी बहुत ही करुणावतार है!_*
*_तुम्हारे ऊपर उनकी कृपा थी- जो इस घड़े के रूप में इस रज के रूप में तुम्हारे घर पधारे।_*
*_शोभा बोली: बहन तुम्हारे ही कारण मैं धन्य हो उठी हूँ। तुम्हारा लाख-लाख धन्यवाद! यह कहकर दोनों बहने आँखों में आँसू भर कर एक दूसरे के गले लग कर रोने लगीं।_*

🌸 जय श्री राधे 💐
गूगल से साभार :-
आशुतोष शर्मा
पुत्र श्री ओम प्रकाश शर्मा
आदर्श नगर, सिविल लाइन
गली नंबर 3 ,
निकट नेहरू चिल्ड्रन एकेडमी जूनियर हाई स्कूल
बदायूं