शिव पुराण कथा में सुनाया दुर्वासा ऋषि की लीलाओं का प्रसंग
बिल्सी। तहसील क्षेत्र के गांव पिंडौल में प्राथमिक स्कूल के निकट मैदान पर चल रही शिव महापुराण कथा में आचार्य संत श्री निराला महाराज ने दुर्वासा ऋषि का प्रसंग सुनाते कहा कि एक दिन दुर्वासा ऋषि के आश्रम के निकट ही यमुना के दूसरे किनारे पर महाराज अम्बरीष का राजभवन था। राजा अंबरीश विष्णु के परम भक्त होने के साथ-साथ बेहद न्यायप्रिय शासक थे। एक बार राजा अंबरीश ने एकादशी का व्रत रखा। व्रत खोलते समय दुर्वासा ऋषि अंबरीश के महल पहुंच गए। अंबरीश ने उन्हें भोजन के लिए प्रार्थना की। ऋषि ने अंबरीश से कहा कि वे स्नान के पश्चात ही भोजन ग्रहण करेंगे। जल्दी लौटने की बात कह कर वे स्नान करने के लिए नदी चले गये। ऋषि दुर्वासा के इंतजार में काफी समय बीत गया तब राजा अंबरीश ने देवताओं का आवाह्न कर आहुति दी और कुछ भाग ऋषि के लिए अलग कर दिया। कुछ समय बाद दुर्वासा ऋषि वापस आए। उन्हें राजा द्वारा उनका इंतजार न करने पर बहुत क्रोध आया। क्रोध के आवेश में उन्होंने अपनी जटा निचोड़ कृत्या राक्षसी उत्पन्न की और उसे अंबरीश पर आक्रमण करने का आदेश दिया। भगवान विष्णु ने भक्त रक्षार्थ सुदर्शन चक्र प्रकट किया और राक्षसी का नाश हुआ। कृत्या का वध करने के बाद सुदर्शन चक्र ऋषि दुर्वासा का पीछा करने लगा। दुर्वासा जी लोकों-लोक में रक्षार्थ दौड़ते फिरे। शिवजी की शरण में पहुंचे। शिवजी ने विष्णु के पास भेजा। विष्णु जी ने कहा आपने भक्त का अपराध किया है। अतः यदि आप अपना कल्याण चाहते हैं, तो भक्त अम्बरीश से ही क्षमा प्रार्थना करें। तब दुर्वासा ऋषि ने उन्हे क्षमा किया। इस मौके पर काफी लोग मौजूद रहे।