बदायूं की बात – सुशील धींगडा के साथ
आजादी के बाद से अगर राजनेतिक द्रष्टिकोण से देखा जाए तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी युग बदायूं वालों को स्वर्णिम युग हो सकता था लेकिन बदायूं के राजनेतिक प्रधानमंत्री श्री मोदी की नजर बदायूू की ओर कराने में लगभग असफल ही नजर आ रहे है। पिछले समय की बात करें तो बदायूं में सांसद सलीम इकबाल शेरवानी ने लम्बा समय व्यतीत किया लेकिन केन्द्र सरकार में मंत्री होने के बावजूद श्री शेरवानी ने बदायूं को क्या दिया यह बात आम आदमी तो क्या स्वयं श्री शेरवानी का अपना दिल भी जानता है। सासंद धर्मेन्द्र यादव ने जिले में विकास की रेल चलाई में सफलता पाई हो परंतु लम्बी दूरी की ट्रेन चलवाने में श्री यादव पूरी तरह असफल रहे यह बात पूरी तरह सत्य है। सांसद डा संघमित्रा मौर्य का बदायूं में राजनेतिक सफर पार्टी और पिता के चलते काफी संकट भरा रहा यह बात अब साफ हो चुकी है। वर्तमान में केंद्र सरकार में बीएल वर्मा मंत्री हैं और श्री वर्मा प्रधानमंत्री श्री मोदी की जनपद में पहली पसंद के रूप में जाने जाते हैं, दातागंज, बदायूं और बिल्सी के विधायक भाजपा के हैं जिले के एक विधायक मैं इधर जाउ या उधर जाउ की उलझन में फसे दिख रहे हैं जिसके चलते बदायूं में भाजपा विरोधी राजनेतिक दलों पर भारी नजर आती है, जिले में विकास कार्य भी तेज गति से हो रहे हैं, उदघाटन, शिलान्यास और लोकार्पण तेजी से हो रहे हैं लेकिन संसदीय चुनाव में राजनेतिक मात मिलने के बावजूद भाजपाई लम्बी दूरी की रेलगाडियां चलवाने में कोई दिलचस्पी क्यों नहीं ले रहे हैं यह बात आम आदमी के साथ भाजपा को सदैव सत्ता में देखने की चाहत रखने वालों के मन को कचोट रही है।