।***** कार्तिक पूर्णिमा के बाद 19 नवंबर तक चलेगा मेला।————————+———————-राजेश वार्ष्णेय एमके———————–उझानी बदांयू 15 नवंबर।
बदांयू जिले में हर वर्ष कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर गंगा स्नान को विशाल मेला ककोडा लगता है। इसमें बस, ट्रक, डीसीएम,बाइक,बैलगाड़ी, ट्रैक्टर,भैंसा बुग्गी के साथ लोग पहुंचते हैं। ग्रामीण भारत की झलक यहां दिखाई देती है।
बदांयू व उझानी से एक घंटे की दूरी पर उत्तर प्रदेश के मिनी कुंभ के नाम से प्रसिद्ध ककोडा में गंगा तट पर तंबुओं की अनूठी दुनिया का बसेरा एक बार फिर शुरू हो गया है। कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर गंगा स्नान के लिए कई किमी के दायरे में तंबुओं का शहर बस गया है। रेतीली मिट्टी के साथ मां गंगा के आंचल में मौज-मस्ती शुरू हो गई है। ऐसी गतिविधियों के साथ यहां एक अलग अनुभूति का अहसास होता है। दूर-दूर से लोग आकर यहां रेती पर बसते हैं। ये देखकर हैरान हो जाएंगे कि यहां मेला आज भी ग्रामीण परिवेश को समेटे हुए पुराने भारत की झलक दिखा रहा है। रेत में दबकर पुरानी चिकित्सा पद्धति से इलाज चल रहा है तो गंगा में गोता लगाकर कई बीमारियों से मुक्ति की कामना की जा रही है।
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ककोडा मेले का इतिहास पुराना है
गंगा किनारे खादर क्षेत्र के रेतीले मैदान पर कार्तिक मेले को
प्राकृतिक चिकित्सा और आस्था के रूप में भी जाना जाता है।
रेतीले स्थान पर युवा और बुजुर्ग गंगा तट पर रेत में लोट रहे हैं और सूर्य की ऊर्जा ले रहे हैं। इसके बाद गंगा में गोता लगा रहे हैं। कहा जाता है कि रेत में शरीर को डुबाने के बाद गंगा में नहाने से कई प्रकार की बीमारी समाप्त हो जाती है। कुश्ती और कबड्डी खेली जा रही है। सिर पर कपड़ा बांधे और हाथों में लाठी लिए लोग प्राचीन भारत की तस्वीर दिखा रहे हैं।—————————
मेले में आज भी बच्चे कंप्यूटर और मोबाइल के स्थान पर भगवान कृष्ण की बांसुरी खरीद रहे हैं। बांसुरी पर उंगली चल रही है। लाठी का बाजार लगा हुआ है। जहां पर किसान आधुनिक हथियार नहीं बल्कि लाठी खरीद रहा है।
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मंगल गीत गाते हुए महिलाओं के सिर पर कलश देखे जा सकते हैं
कुछ नव दंपति तो कुछ बच्चों का कुआं पूजन की रस्म गंगा तट पर की जा रही है। बच्चों के मुंडन हो रहे हैं। पुराने मंगल गीतों पर महिलाएं सिर पर कलश रख गंगा पूजन के लिए आ रही हैं। पूडी के साथ पांच बाल रखकर गंगा में विसर्जित किए जा रहे हैं।
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देहाती भाषा में युवाओं की टोली गंगा मैया की जय के नारे लगा रही है। जबकि वाहनों में हर हर गंगे के उद्घोष से वातावरण गंगामय हो रहा है। मेले में चल रहे गंगा के गीत से खादर के विशाल रेतीले मैदान में आस्था और श्रद्धा की बयार बह रही है।————————————–
जान न पहचान फिर भी एक हो गए सब
देश प्रेम की बयार भी मेले में बह रही है। कहीं पर तिरंगा लहरा रहा है तो कहीं पर भगवा। कहीं सियासी डेरा लग चुका है तो कही धूनी रमाई जा रही है। लोग एक दूसरे से परिचित नहीं है फिर भी आपस में प्रेम दिखाई पड़ रहा है।——