महापुरुष स्मारक समिति एवम सर्व समाज जागरूकता अभियान भारत के संयुक्त तत्वावधान में दुनिया भर में चिकित्सा क्षेत्र (आयुर्वेद) के प्रथम जनक भगवान धन्वंतरि का जन्मोत्सव (जयंती) समारोह सीता रोड स्थित नीलम हॉस्पिटल में धूमधाम से मनाया गया। सर्वप्रथम मुख्य अतिथि/ मुख्य वक्ता अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष कवि माधव मिश्र ने भगवान धन्वंतरि के चित्र के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित कर रोली चंदन से तिलक कर पूजन किया। अध्यक्षता डॉक्टर महेश कुमार गुप्ता (हॉस्पिटल चेयरमैन)ने की संचालन डॉक्टर अरविन्द कुमार गुप्ता ने किया। विशिष्ट अतिथि प्रमोद कुमार शर्मा मीडिया प्रभारी सर्व समाज जागरूकता अभियान भारत एवं जिला उपाध्यक्ष अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा, पूर्व कर्मचारी नेता,डॉक्टर निशा गुप्ता, डॉक्टर शज़िया शाहीन (एम बी बी एस, एम एस), डॉक्टर नितिन कौशिक, पंकज बार्ष्णेय, अंकित बार्ष्णेय, राहुल सिंह,सुनील सक्सेना, रामप्रकाश सक्सेना, रहे।व्यवस्थापक विकास यादव, सीता कश्यप, सरोज कुमारी, शोभा, लोकेश, विनोद रहे। कार्यक्रम आयोजक पण्डित सुरेश चंद्र शर्मा रहे। मुख्य अतिथि/ मुख्य वक्ता अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष कवि माधव मिश्र ने समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि धनतेरस देवताओं के वैद्य माने जाने वाले श्री धन्वंतरि जी के प्राकट्य दिवस के रूप में मनाया जाता है। दीपावली के अवसर पर कार्तिक त्रयोदशी धनतेरस को भगवान धन्वंतरि की पूजा की जाती है और उनके चित्र या मूर्ति के सामने आरोग्य का वरदान प्राप्त किया जाता है। भारतीय संस्कृति में स्वास्थ्य का स्थान धन से ऊपर माना जाता है। यह कहावत आज भी प्रचलित है कि “पहला सुख निरोगी काया, दूजा सुख घर में माया।”श्री धन्वंतरि हिन्दू मान्यता के अनुसार भगवान विष्णु के बारहवें अवतार हैं जिन्हें आयुर्वेद चिकित्सा का जनक कहा जाता है। भगवान धन्वंतरि का पृथ्वी लोक में अवतरण समुद्र मंथन के समय कार्तिक त्रयोदशी धनतेरस को हुआ था। भगवान धन्वंतरि की चार भुजाएं हैं -ऊपर की दोनों भुजाओं में शंख और चक्र धारण किए हुए हैं जबकि दो अन्य भुजाओं में से एक में जलूका और औषधि तथा दूसरे में अमृतकलश लिए हुए हैं। इन्हें आयुर्वेद की चिकित्सा करने वाले डॉक्टर – वैद्य आरोग्य का देवता कहते हैं। श्री धन्वंतरि ने अमृत मय औषधियों की खोज की थी। इनके वंश में दिवोदास जी हुए जिन्होंने शल्य चिकित्सा का विश्व का पहला विद्यालय काशी (वाराणसी) में स्थापित किया। राजर्षी विश्वामित्र के पुत्र सुश्रुत जी दिवोदास के शिष्य थे जिन्होंने सुश्रुत संहिता लिखी। सुश्रुत जी को दुनिया का पहला शल्य चिकित्सक कहा जाता है। भगवान शिव आदि शल्य चिकित्सक हैं जिन्होंने गणेश जी की उत्पत्ति हाथी का सिर लगाकर की थी। सुश्रुत के आगे अग्निवेश, फ़िर चरक हुए जिन्होंने चरक संहिता लिखी जिसे सभी बी ए एम एस के छात्र कोर्स में पढ़ते हैं। भगवान श्री धन्वंतरि को पीली धातु प्रिय है इसलिए इस दिन पीतल के वर्तन , सोना तथा चांदी के सिक्के, चांदी के गणेश जी, लक्ष्मी जी खरीदने की परम्परा है। यह भी मान्यता है कि आज के दिन जो भी खरीदा जाता है वह तेरह गुना बढ़ जाता है। आज देश भर में अधिकतर लोग अपनी हैसियत के अनुसार कुछ न कुछ जरूर खरीदते हैं। इस दिन दरवाजे पर दीपक जलाने की प्रथा है। धनतेरस के दिन जो भी भगवान धन्वंतरि का स्मरण कर या फिर श्रद्धा से नमन करता है उसकी अकाल मृत्यु अर्थात् एक्सीडेंट या फिर आपदा से नहीं होती है। धनतेरस का जैन धर्म में भी महत्त्व बताया गया है, जैन धर्म में इसे ध्यानतेरस के नाम से मनाया जाता है, मान्यता है कि आज ही के दिन भगवान महावीर ध्यान मुद्रा में चले गए थे और तीन दिन ध्यान मुद्रा में रहने के बाद दीपावली के दिन शरीर त्याग दिया था। आज के दिन धनिया के बीज बोने की भी प्रथा है। आज ही के दिन नई झाड़ू तथा मिट्टी या फिर सोने चांदी के गणेश जी लक्ष्मी जी खरीदने की परम्परा है। भगवान धन्वंतरि जी की जय। अध्यक्षता करते हुए डॉक्टर महेश कुमार गुप्ता संचालक डॉक्टर अरविन्द कुमार गुप्ता, विशिष्ट अतिथि प्रमोद कुमार शर्मा मीडिया प्रभारी सर्व समाज जागरूकता अभियान भारत एवं जिला उपाध्यक्ष अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा,डॉक्टर निशा गुप्ता, डॉक्टर नितिन कौशिक, डॉक्टर शज़िया शाहीन, अंकित बार्ष्णेय, पंकज बार्ष्णेय राहुल सिंह , सुनील सक्सेना, रामप्रकाश सक्सेना, विकास यादव, सीता कश्यप,सरोज कुमारी, शोभा, लोकेश, विनोद ने विचार व्यक्त किए। नीलम कुमारी, बृजभान सिंह, श्री मति शबनम सिंह, श्री मति गीता देवी, श्री मति तुलसा देवी, श्री मति नेमवती, श्री मति मुन्नी देवी, श्री मति ज्योति, श्री मति मीरा, राकेश कुमार, सुरेन्द्र कुमार, समीर, विक्रम, श्री मति मीनाक्षी, श्री मति ज्ञान देई, रमेश कुमार, अशोक कुमार, इमरान,अनस, अफजल खान, शमा, श्री मति शमिरीन, श्री मति शकीला, श्री मति शकुंतला आदि मौजूद रहे।