।******** उझानी बदांयू 25 अक्टूबर। धनवती देवी सरस्वती बालिका आवासीय इंटर कालेज में श्री राम कथा के पंचम दिवस पर बोलते हुए शांतनु जी महाराज ने अयोध्या कांड की पावन मांगलिक प्रारंभिक चौपाइयों के गायन के साथ प्रारंभ किया । 1 माह के बाद जनकपुरी से लौटकर श्री धाम पहुंचे दशरथ ने 1 माह के बाद राज्यसभा बैठाई तो महाराज दशरथ ने भरी सभा में शीशा देखा महाराज ने शीशा देखने के तात्पर्य को स्पष्ट करते हुए कहा कि सही व्यक्ति का गुरु भी है शीशा, दुश्मन भी इसलिए शीशा जरूर देखना चाहिए स्वयं के देखने से गुरु का काम करता है यदि दूसरा दिखाएं तो दुश्मन का काम करता है शीशा। शीशा देखने का अर्थ है आत्मा अवलोकन आत्मचिंतन आत्म दर्शन आत्म संवाद से है। जब महाराज को सफेद बाल कान के दिखाई पड़े तो उन्होंने राज्य राम को सौंपने का मन बनाया ऐसे ही संकेत मिलता है। इससे संकेत मिलता है कि मनुष्य को धीरे-धीरे जिम्मेदारियों से हटकर भजन में मन लगाना चाहिए। राज्याभिषेक की तैयारियां हो रही थी और देवता विघ्न की रचना कर रहे थे। सरस्वती जी ने मंथरा की बुद्धि बिगाड़ी और मंथरा ने सत्यानाश कर दिया महाराज जी ने मंथरा के बारे में बताते हुए कहा कि मंथरा कुसंग है और साथ ही दहेज का सामान इन दोनों से बचना ही चाहिए। कुसंग को कभी छोटा नहीं समझना चाहिए वरदान के प्रसंग को सुनाते हुए महाराज श्री ने कहा मां ने वनवास का वरदान मांगा इस बात को महाराज दशरथ बर्दाश्त नहीं कर पाये बहुत उलाहना भी दी। विनती भी की लेकिन कैकेई ने एक नहीं सुनी इसी कारण से कुसंग से बचना ही चाहिए। भगवान राम को वनवास की सूचना प्राप्त हुई और मां कौशल्या से आशीर्वाद लेकर चले राष्ट्र संघ में कहा इस देश की माताओं की छाती में वह शक्ति है और क्षमता है वह पराक्रम है सहनशीलता है जो इस देश की धर्म संस्कृति परंपराओं को जीवित रखे है । कौशल्या माने एक प्रकार से पारिवारिक एकता का संकेत किया है कि मां के प्रति भगवान राम को भड़काया नहीं अपितु मां का दर्जा दिया है और मां और पिता यदि दोनों की आज्ञा है तो तुझे जाना चाहिए। लक्ष्मण जी को बहुत समझाने के बाद भी लक्ष्मण जी जब नहीं माने तो लक्ष्मण भगवान और जानकी तीनों वन के लिए चले यह है रघुवंश का भ्रातृ प्रेम जिस कारण से आज भी हम सब ऐसे भाइयों को याद करके आनंदित होते हैं।———————— राजेश वार्ष्णेय एमके