चतुर्थ कूष्मांडा
विक्रम संवत 2081 चतुर्थ दिवस आज का दिन कूष्मांडा को समर्पित होता है श्रीमद् देवी भागवत पुराण के अनुसार चौथे दिन मां के स्वरूप कूष्मांडा की पूजा करनी चाहिए पुराण में वर्णित है प्रलय से लेकर सृष्टि के आरंभ तक चारों ओर अंधकार ही अंधकार था और सृष्टि एकदम सुन्न थी तब आदिशक्ति ने कुष्मांड का रूप में अंडाकार ब्रह्मांड की रचना की देवी भागवत पुराण में मां के इस रूप का वर्णन इस प्रकार है मां कुष्मांडा शेर पर सवार रहती हैं उनके हाथों में क्रमशः कमल पुष्प बाण धनुष का मंडल चक्र और गदा सुशोभित हैं इनकी आठवें हाथ में माला है जिसमें सभी प्रकार की सिद्धियां हैं मां कुष्मांडा का निवास सूर्यलोक के मध्य में माना जाता है पुराण के अनुसार केवल मां कुष्मांड का का तेज ही ऐसा है जो सूर्य लोक में निवास कर सकती हैं आदिशक्ति को सूर्य के तेज का कारण भी कहा जाता है यहां तक की मां कुष्मांडा के तेज के कारण ही दसों दिशाओं में प्रकाश फैला हुआ है जिन की उपासना से सभी प्रकार की सिद्धियां और शक्तियां प्राप्त होती हैं सच्चे मन से मां के रूप की आराधना करने पर सभी रोगों का नाश होता है आज माता की उपासना में पेठा यानी कुम्हड़ा का खास महत्व है मां को प्रसाद स्वरूप सूखे मेवे का भोग लगाना चाहिए/
उपासना मंत्र
वंदे वांछित कामर्थ चंद्रआकृत शेखराम /
सिंह रूडा अष्टभुजा कुष्मांडा यशस्विनी //
जाप मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु मां कुष्मांडका रूपेण संस्थिता नमस्तस्ए नमस्तस्ए नमस्तस्ए नमो नमः l
राजेश कुमार शर्मा ज्योतिषाचार्य
9058810022