****///* उझानी बदांयू 15 सितंबर। विगत संध्या को हिन्दी-दिवस के उपलक्ष्य में डॉक्टर गीतम सिंह के प्रतिष्ठान जी. एस. हॉस्पिटल , सहसवान रोड , पर एक काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ माँ वाग्देवी के चित्र के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित कर सरस्वती वंदना से किया गया। सर्वप्रथम विवेक चतुर्वेदी ने ग़ज़ल कही –
छुपा कर इस तरह तस्वीर देखी जा रही है
कि दुनिया को लगे तक़दीर देखी जा रही है।
कहा था फूल सी गर्दन का जज़्बा देखने को
उठा कर हाथ में शमशीर देखी जा रही है।
इसके बाद डॉक्टर प्रभाकर मिश्र ने पढ़ा –
निगाहों में तुम हो ख्यालों में तुम हो
ये ज़न्नत नहीं है तो फिर और क्या है।
डॉक्टर गीतम सिंह ने कहा –
ओ गोरों के बाप हिंग्लिशी
लौट सनातन में आओ
हिन्दी में रिश्ते अपनाकर
भारत को नया बनाओ।
शैलेन्द्र घायल ने कहा –
मौत के फ़रमान आकर टल गए
ज़िन्दगी को फिर अंधेरे ख़ल गए।
संजीव सक्सेना ‘ अमर ‘ ने पढ़ा –
दोस्ती को बढ़ाता रहा आदमी
और दुश्मन बनाता रहा आदमी।
डॉ अरविन्द धवल बदायूं ने पढ़ा –
न जाने कब कहां खोया मृदुल व्यवहार का मौसम।
सभी के प्रति सभी में था कभी उपकार का मौसम।।
वारिस उझानवी ने कहा –
यूं ही माहौल मोहब्बत का बना कर देखो।
दुश्मनों को भी गले अपने लगा कर देखो।।
इसके अलावा रीता रोली , उमेश उन्मुक्त , ब्रजेन्द्र वार्ष्णेय आदि कवियों ने काव्यपाठ किया। अध्यक्षता डॉक्टर प्रभाकर मिश्र व संचालन डॉक्टर गीतम सिंह ने किया। देर रात तक चली गोष्ठी में श्रोताओं ने दिल खोलकर कवियों का तालियां बजाकर उत्साह वर्धन किया। राजेश वार्ष्णेय एमके