उझानी बदांयू 31 अगस्त।
हल्के पीले रंग का बया यह नन्हा सा पक्षी, घास के छोटे-छोटे तिनको और पत्तियों को चुनकर लालटेन की तरह लटकते बेहद ही खुबसूरत घोंसले का निर्माण करता है। इसलिए इसे इसी कुशलता के कारण पक्षियों का इंजीनियर कहा जाता हे। बया प्रजाति के पक्षी पूरे भारतीय उपमहादीप में देखने को मिलते है।
पक्षी विशेषज्ञ बताते हैं कि बया बारिश के मौसम में घोंसला इसलिए बनाती हैं क्योंकि इस मौसम में इन्हें अपने बच्चों को खिलाने के लिए कीड़े मकोड़े आसानी से मिल जाते हैं।
ये घोंसले को वाटरप्रूफ बनाने के लिए विशेष तकनीक का इस्तेमाल करते हैं। घोंसले बनाने में ये विशेष घास, सरकंडा और मिट्टी का प्रयोग करते हैं। शिकारियों से घोंसले को बचाने के लिए ऊपरी परत पर कंटीली घास की एक परत भी लगाते है।
बारिश के मौसम में नर पक्षी आधा घोंसला बनाने के बाद मादा पक्षी को उसे देखने के लिए आवाज लगाकर आकर्षित करता है और यदि मादा को वह घोंसला पसंद नहीं आता तो नर उसे अधूरा छोड़कर दूसरा घोंसला बनाना शुरू कर देता है।
बताते हैं कि मादा पक्षी को यह घोंसला यदि पसंद आ गया तो वह उसके अंदर बैठकर आराम करती है। नर पक्षी इस घोंसले को पूरा करता है। बयां मादा पक्षी ऐसा पक्षी है, घोंसले में रहना ओर उसी में अंडे देते हैं।
कौवे व अन्य शिकारी पक्षी कई बार इनके घोंसले को तहस नहस कर इनके अंडे बच्चों को खा जाते हैं और यह दूर से सिर्फ चीखते रहते हैं। बया इसलिए अपना घोंसला ऊंचे और सुरक्षित पेड़ या नदी, तालाब के किनारे लटकाकर बनाता है, जिससे यह शिकारियों की नजरों से बचा रहता है। यह झुंड में रहना पसंद करते हैं। एक पेड़ पर पचास से सौ घोंसले तक बना लेते है। कितना भी तेज बारिश है मजाल है एक बूंद पानी भी इनके घोंसले में चला जाऐ , है ना गजब की कारीगरी। राजेश वार्ष्णेय एमके