बदायूं की बात – सुशील धींगडा के साथ
शहर में पिछले तीन से होने वाली बरसात के बाद होने वाले जलभराव को देखकर जब हमारे पालनहार समस्या का निराकरण कराने के प्रयास की जगह चुप्पी साधकर बैठ जाये और सब कुछ जानकर अंजान होने का ढोग करें तो जनता कुछ ना कुछ सोचने को मजबूर होना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। आम आदमी को यह लगने लगा है कि नालों की सफाई केवल कागजों में सिमट कर रह गई और उसका धन ठिकाने लग गया। हो सकता है कि आम आदमी की सोच गलत हो लेकिन हमारे पालनहार चुप्पी साधकर क्यों बैठे है इसका जवाब किसी के पास नहीं है और यही कारण जनता को अपने पालनहार पारदर्शिता से काम कराते नजर नहीं आ रहे है। कुर्सी मिलने के बाद इस तरह की खामोशी जनता के गले नहीं उतर रही है।