ठाकुर बांकेबिहारी को प्रेम की डोर से हिंडोले में झुलाने को देश दुनिया के भक्त पूरे साल इंतजार करते हैं। साल में एक ही दिन आराध्य बांकेबिहारी दिव्य और भव्य स्वर्ण-रजत हिंडोला में विराजित होकर भक्तों को दर्शन देते हैं। ऐसे में लाखों श्रद्धालु आराध्य के विलक्षण दर्शन को वृंदावन पहुंचने लगे हैं। हरियाली तीज सात अगस्त को ठा. बांकेबिहारी बेशकीमती स्वर्ण-रजत हिंडोले में विराजमान होकर भक्तों को दर्शन देंगे। ठा. बांकेबिहारीजी साल में एक ही दिन हिंडोले में दर्शन देते हैं।
मंदिर के करीब 162 साल के इतिहास में शुरूआती दौर में साधारण हिंडोले में ठाकुरजी भक्तों को दर्शन देते थे। लेकिन बांकेबिहारी के अन्नय भक्त सेठ हरगुलाल बेरीवाला ने परिवार के सहयोगियों संग ठाकुरजी का दिव्य स्वर्ण-रजत हिंडोला तैयार करवाया। इसके लिए नेपाल के टनकपुर के जंगल से लकड़ियों का इंतजाम करवाया। इसके ऊपर सोने और चांदी की परत से नक्कासी करवाई। जो अद्भुत है।
स्वर्ण-रजत इस हिंडोले में पहली बार 15 अगस्त को ठाकुर जी विराजमान हुए थे। करीब 77 साल पहले 15 अगस्त के दिन ही वृंदावन के ठा. बांकेबिहारी मंदिर में सावन मास में भगवान को झुलाने को सोने-चांदी के झूला (हिंडोला) मंदिर को समर्पित किया था।
मूलरूप से कोलकाता निवासी और ठाकुरजी के अनन्य भक्त सेठ हर गुलाल बेरीवाला ने स्वर्ण-रजत हिंडोला मंदिर प्रशासन को भेंट किया था।
मंदिर सेवायत प्रह्लादवल्लभ गोस्वामी बताते हैं करीब 125 अलग-अलग भागों में तैयार हिंडोला नक्काशी कला का बेजोड़ प्रमाण है। हिंडोला तैयार करने के लिए करीब 25 लाख रुपये ख़र्च हुए। जिसकी वर्तमान कीमत करीब सौ करोड़ रुपये आंकी जाती है।
20 किलो सोना, एक कुंतल चांदी से पांच साल में तैयार हुआ हिंडोला
सेठ हर गुलाल के वंशज राधेश्याम बेरीवाला बताते हैं, कि सेठ हरगुलाल बेरीवाला ठाकुर बांकेबिहारीजी के परम भक्त थे और उनके दर्शन किए बिना अन्न का दाना भी स्वीकार नहीं करते थे। उन्होंने बताया उस जमाने में सोने-चांदी के हिंडोले बनवाने में 20 किलो सोना व करीब एक कुंतल चांदी प्रयोग की गई थी तथा हिंडोलों के निर्माण में 25 लाख रुपए की लागत आई थी। हिंडोले 1942 से बनना शुरू हुआ और 1947 में तैयार हुआ।
बनारस के कारीगरों ने बनाया था हिंडोला
हिंडोलों के लिए बनारस के प्रसिद्ध कारीगर लल्लन व बाबूलाल को बुलाया गया था। इसके लिए बीस उत्कृष्ट कारीगरों ने लगभग पांच वर्ष तक कार्य किया।