रुक्मिणी विवाह के बादकल भक्ति रस की ऐसी बयार बह रही है कि लोग भगवान कृष्ण की भक्ति में पूरी तरह से डूब गए हैं।
श्री रघुनाथ जी मंदिर ( पंजाबी मंदिर ) बदांयू में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा सप्ताह ज्ञान यज्ञ में सातवें दिन परम श्रद्धेय भागवत भास्कर पं. मुमुक्षु कृष्ण शास्त्री जी कथा को आगे बढ़ाते हुए प्रद्युम्न जन्म , राजा नृग का उद्घार एवं सुदामा चरित का वर्णन किया।
राजा नृग का उद्घार
कथा वाचक ने बताया एक बार भूल से राजा नृग ने पहले दान की हुई गाय को फिर से दूसरे ब्राह्मण को दान दे दिया। यद्यपि इसका ज्ञान राजा नृग को दान देते समय नहीं था, किंतु इसके फलस्वरूप ब्राह्मणों के शाप के कारण राजा नृग को गिरगिट होकर एक सहस्र वर्ष तक कुएँ में रहना पड़ा। अंत में कृष्ण अवतार के समय नृग का उद्धार हुआ।
पंडित श्री मुमुक्षु कृष्ण शास्त्री जी ने बताया कि मित्रता कैसे निभाई जाए यह श्री कृष्ण सुदामा से सीखें।
सुदामा अपनी पत्नी के आग्रह पर अपने सखा से मिलने के लिए द्वारिका पहुंचे।
सुदामा ने द्वारिकाधीश के महल का पता पूछा और महल की ओर बढ़ने लगे द्वार पर द्वारपालों ने सुदामा को भिक्षा मांगने वाला समझकर रोक दिया। तब उन्होंने कहा कि वह कृष्ण के मित्र हैं।
द्वारपाल महल में गए और प्रभु से कहा कि कोई उनसे मिलने आया है।अपना नाम सुदामा बता रहा है।
द्वारपाल के मुंह से उन्होंने सुदामा का नाम सुना प्रभु सुदामा सुदामा कहते हुए तेजी से द्वार की तरफ भागे सामने सुदामा सखा को देखकर उन्होंने उसे अपने सीने से लगा लिया।
सुदामा ने भी कन्हैया कन्हैया कहकर उन्हें गले लगाया और सुदामा को अपने महल में ले गए ओर उनका अभिनंदन किया।
इस दृश्य को सुनकर श्रोता भाव विभोर हो गए।
कथा के अंतिम दिन हर चेहरा खुशी से सराबोर है और कदम थिरक रहे हैं बच्चें हो या बुर्जुग, संत हो या भक्त कोई नृत्य करने से पीछे नहीं रहना चाहता था।
एक साथ हजारों भक्तों ने नृत्य का ऐसा समा बांधा की कोई भी भक्ति रस के इस सागर में डूबने से खुद को नहीं रोक पाया। कथा पांडाल में भक्तों का सैलाब उमड़ा हुआ था और तरफ राधे-राधे की गूंज ही थी।
आज पूर्ण आहुति के साथ 11 बजे भंडारे का आयोजन किया जाएगा।