10:15 am Friday , 31 January 2025
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स्वामी विवेकानन्द जी की पुण्य तिथि

महापुरुष स्मारक समिति एवम सर्व समाज जागरूकता अभियान भारत के संयुक्त तत्वावधान में महान देशभक्त, दार्शनिक, भारत के वेदांत दर्शन का शिकागो (अमेरिका) में डंका बजाने वाले स्वामी विवेकानन्द जी की पुण्य तिथि पर फब्बारा चौक स्थित सुभाष प्राथमिक विद्यालय एवम गांधी प्राथमिक विद्यालय (संयुक्त) मे धूमधाम से मनाई गई।
सर्वप्रथम मुख्य अतिथि /मुख्य वक्ता अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष कवि माधव मिश्र ने चित्र के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारम्भ किया।अध्यक्षता राजेंद्र कुमार एवम अजय शर्मा ने संयुक्त रूप से की।संचालन पण्डित सच्चिदानन्द शर्मा ने किया।व्यवस्थापक श्री मति गुंजन बतरा , एवम श्री मति पूजा गुप्ता रही। विशिष्ट अतिथि मीडिया प्रभारी प्रमोद कुमार शर्मा,एन के शर्मा (पूर्व प्रशासनिक अधिकारी), राजेंद्र सिंह राघव (पूर्व प्रधानाचार्य इंटर कॉलेज), देवेन्द्र प्रसाद शर्मा (पूर्व प्रवक्ता), हेमंत कुमार गुप्ता (समाजसेवी),दीपेंद्र नाथ गुप्ता, डॉक्टर जितेन्द्र वर्मा,राजेश कुमार रहे। कार्यक्रम आयोजक पण्डित सुरेश चंद्र शर्मा रहे। मुख्य अतिथि/मुख्य वक्ता अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष कवि माधव मिश्र ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि स्वामी विवेकानन्द जी महान विचारक, वक्ता, देशभक्त, समाज सुधारक, दार्शनिक, आध्यात्मिक गुरु थे। उनके द्वारा सबसे प्रचलित दिया गया संदेश है -“उठो जागो तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।”हमारे भारत में स्वामी विवेकानन्द जी युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत हैं इसलिए उनका जन्म दिन १२जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस के रुप में मनाया जाता है। स्वामी विवेकानंद जी का जन्म १२जनवरी १८६३को कलकत्ता (कोलकाता) मे प्रसिद्ध कायस्थ परिवार में हुआ था। आपके पिता विश्वनाथ दत्त कलकत्ता हाई कोर्ट के प्रसिद्ध वकील थे। आपकी माता भुवनेश्वरी देवी धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थीं। बचपन का नाम नरेन्द्र था। उन्हें मां रामायण, महाभारत की कहानियां सुनाती, घर में भजन कीर्तन चलता जिसके चलते नरेन्द्र का बचपन से ही अध्यात्म की ओर झुकाव हो गया। नरेन्द्र ने १८७१मे ईश्वर चंद्र विद्यासागर मेट्रोपोलियन स्कूल से पढ़ाई की। १८८४मे प्रेसीडेंसी कॉलेज से स्नातक किया। इसके अलावा वेद, उपनिषद, पुराण, शास्त्रों, भागवत, गीता, रामायण,महाभारत का गहन अध्ययन किया। वह ईश्वर को जानना चाहते थे कई साधु सन्त के संपर्क में आए लेकिन संतुष्टि नहीं मिली तब ऋषि देवेन्द्र नाथ जी उन्हे सन्त रामकृष्ण परमहंस जी से मिलने को कहा। वह संत रामकृष्ण परमहंस से मिलने पहुंचे और उनसे पूंछा आपने ईश्वर को देखा है तब परमहंस ने उत्तर दिया बिल्कुल ऐसे जैसे तुम्हें देख रहा हूं। उनके कई प्रश्नों का उत्तर संत रामकृष्ण परमहंस ने दिए अब नरेन्द्र- सन्त परमहंस के समर्पित शिष्य बन गए। अब नरेन्द्र के घर पर मुसीबतों का पहाड़ टूटा और पिता गम्भीर बीमार हो गए सभी धन दौलत उनके इलाज में खर्च हो गई। खाने खराब हो गए। संत रामकृष्ण परमहंस समझ गए नरेन्द्र परेशान है। एक दिन परमहन्स ने काली मां की जीवंत मूर्ति के सामने नरेन्द्र को धक्का दिया और कहा मांग ले नरेंद आज तुझे यह मां संसार की जो भी धन दौलत मांगेगा देंगी। कुछ देर बाद नरेन्द्र उठे संत रामकृष्ण परमहंस ने पूछा मांगा हां गुरुजी ज्ञान मांगा। तभी संत रामकृष्ण परमहंस ने उन्हें स्वामी विवेकानंद नाम दिया। १८८६में संत रामकृष्ण परमहंस ने स्वर्गवास से पहले स्वामी विवेकानंद जी को बुलाया और अपनी आध्यात्मिक शक्तियां उनमें स्थानांतरित कर दीं। स्वामी विवेकानन्द जी भारत की यात्रा पर निकले और भारतीय दर्शन और वेदांत का प्रचार प्रसार करने लगे। स्वामी विवेकानंद जी वेदांत के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे। वह कहते थे कि -“शिक्षा ऐसी हो जिससे बालक का शारीरिक, मानसिक और आत्मिक विकास हो सके।”मैं कहना चाहता हूं कि शिक्षा के माध्यम से विचारों को लादना नहीं चाहिए बल्कि बालक मे सोचने की प्रवृत्ति पैदा करनी चाहिए।”स्वामी विवेकानन्द जी ने १८९३में भारत की ओर से अमेरिका के शिकागो में विश्व धर्म सम्मेलन में हिस्सा लिया। स्वामी विवेकानंद जी ने धर्म संसद में भाषण की शुरुआत “मेरे अमेरिका के बहिनों भाइयों”से की। पूरे सभागार में तालियां गूंज उठी। अगले दिन अमेरिका के मीडिया में स्वामी विवेकानन्द जी के वक्तव्य की चर्चा छायी रही। पत्रकारों ने कहा कि स्वामी विवेकानन्द जी ने पूरे अमेरिका का दिल जीत लिया। आज भी स्वामी विवेकानंद जी की पूरी दुनियां के सर्वश्रेष्ठ विद्वानों में की जाती है। तीन साल तक सनातन धर्म और वेद वेदांग का अमेरिका में प्रचार किया और एक मई १८९७को कलकत्ता वापिस आ गए। १८९७में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। कई साहित्यिक कार्य करते हुए राज योग, कर्म योग भक्ति योग, मेरे गुरु जैसे ग्रन्थ लिखे। १८९९मे न्यूयार्क में वेदांत सोसायटी की स्थापना की। सन १९००में भारत आए। और बोध गया तथा वाराणसी की यात्रा की।स्वामी विवेकानंद जी ने ०४जुलाई १९०२में ध्यान करते हुए बेलूर मठ में महासमाधि ले ली। मात्र ३९बर्ष की आयु में स्वर्गवास हुआ। शत शत नमन।अध्यक्षता करते हुए राजेंद्र कुमार एवम अजय शर्मा ने संयुक्त रूप से विचार व्यक्त किए।संचालन करते हुए नगर अध्यक्ष पण्डित सच्चिदानन्द शर्मा, विशिष्ट अतिथि प्रमोद कुमार शर्मा,श्री मति गुंजन बतरा, श्री मति पूजा गुप्ता, एन के शर्मा, राजेंद्र सिंह राघव, देवेन्द्र प्रसाद शर्मा, हेमंत कुमार गुप्ता,दीपेंद्र नाथ गुप्ता, डॉक्टर जितेन्द्र वर्मा, राजेश कुमार ने विचार व्यक्त किए। राहुल, अनुज कुमार, ओमकार, आरिश, रिंकू, प्रिंस, नंदनी देवी, हेमा देवी, शिवम, प्रियांशु, अजीन ख़ान, पप्पू आदि छात्र छात्राओं ने देशभक्ति गीत प्रस्तुत किए।