हमेशा सुदामा और श्रीकृष्ण की तरह होनी चाहिए मित्रता
वैन गांव में संपन्न हुई श्रीमदभागवत कथा
बिल्सी। तहसील क्षेत्र के गांव वैन में ग्राम देवता मंदिर पर चल रही श्रीमद् भागवत कथा के अंतिम दिन बृहस्पतिवार को कथावाचक अवध किशोर महाराज ने भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता का प्रसंग सुनाया। जिसको सुनकर श्रोता मंत्रमुग्ध हो उठे। उन्होने कहा कि मित्र हमारे सुख-दुख के साथी होते हैं। किसी भी परिस्थिति में मित्र हमेशा साथ खड़े होते है। भारतीय परंपरा में मित्रता की बहुत सारी कहानियां प्रचलित हैं। इन्हीं में से एक कृष्ण और सुदामा की कहानी है। जिससे हमें मित्र के प्रति ईमानदारी, त्याग और सम्मान का भाव दिखाई देता है। जब कभी मित्रता की बात होती है तो कृष्ण और सुदामा की मिसाल दी जाती है। उन्होने कहा कि जब कृष्ण बालपन में ऋषि संदीपन के पास शिक्षा ग्रहण कर रहे थे तो उनकी मित्रता सुदामा से हुई थी। कृष्ण एक राजपरिवार में और सुदामा ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए थे। शिक्षा-दीक्षा समाप्त होने के बाद भगवान कृष्ण राजा बन गए वहीं दूसरी तरफ सुदामा के बुरे दौर की शुरुआत हो चुकी थी। बुरे दिन से परेशान होकर सुदामा की पत्नी ने उन्हें राजा कृष्ण से मिलने जाने के मजबूर किया। पत्नी के जिद को मानकर सुदामा अपने बाल सखा कृष्ण से मिलने द्वारिका गए। तब कृष्ण अपने मित्र सुदामा के आने का संदेश पाकर नंगे पैर ही उन्हें लेने के लिए दौड़ पड़े। मित्र सुदामा की दयनीय हालत देखकर भगवान कृष्ण के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। भगवान कृष्ण ने मित्र सुदामा का पैर अपने आंसुओं से साफ कर दिया। यह भगवान कृष्ण का अपने मित्र सुदामा के प्रति अनन्य प्रेम को दर्शाता है।