8:21 am Friday , 31 January 2025
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उझानी के साथ सौतेला व्यवहार क्यों और कब तक ?

बदायूं की बात – सुशील धींगडा के साथ
जनपद के उझानी उपनगर की बात करें तो उझानी को देश की आजादी से पूर्व अंग्रेजी शासनकाल में बदायूं जिले की आर्थिक मंडी की तरह बनाने की राह बनाई गई थी। बरेली – मथुरा – आगरा राजमार्ग पर बसे उझानी की स्थति यह थी कि उझानी में कपडे की सबसे बडी मंडी थी, कोल्ड स्टोर की संख्या के मामले में प्रदेश में उझानी का महत्वपूर्ण स्थान था मूंगफली व आलू उत्पादन में भी नगर का महत्वपूर्ण स्थान था। पुराने समय में बरेली – कासगंज रेलमार्ग पर सबसे बडा मालगोदाम उझानी में था। उझानी के राजनेतिक महत्व की बात करें तो बदायूं – उझानी सीट पर उझानी के निवासी राजनेतिकों में पुरषोत्तम लाल भदवार, श्रीकृष्ण गोयल, प्रमिला भदवार मेहरा और विमल कृष्ण अग्रवाल विधायक चुने गए और अमृत लाल भदवार, हर बिलास गोयल और वर्तमान में पूनम अग्रवाल ने उझानी की राजनीति को अलग पहचान देने का काम किया। व्यवसायिक स्थति को लेकर उझानी की बात की जाए तो एपीएस परिवार जनपद के साथ प्रदेश में अपनी अलग पहचान बनाये दिखाई देता है। समाजसेवा और खेल की बात करें तो उझानी में राजन मेंहदीरत्ता और किशनचंद्र शर्मा की गूंज की गूंज दूर – दूर तक सुनाई देती है। शिक्षा की बात करें तो पूर्व के समय में एक मात्र डिग्री कालिज उझानी कोतवाली क्षेत्र कछला में गोविन्द बल्लभ पंत महाविद्यालय था जो आगरा विश्वविद्यालय से सम्बृद्ध था और शिक्षा के तत्कालीन पिछडे क्षेत्र में कछला महाविद्यालय से एक बस संचालित हुआ करती थी जो बदायूंत से रोजाना छात्र – छात्राओं को लाने और पहुंचाने का काम किया करती थी। वर्तमान में भी उझानी की शिक्षण संस्थाये सबसे अधिक और महत्वपूर्ण स्थान पर दिखती हैं। वर्तमान समय की बात करें तो उझानी निवासी को पहला राज्यसभा सांसद बनने और उझानी क्षेत्र से पहला केंद्रीय मंत्री मनोनीत होने का गौरव बीएल वर्मा ने उझानी को दिलाया लेकिन इतना सब देखने और सुनने तथा सोचने के बाद जब उझानी के साथ सौतेले व्यवहार की बात सामने आती हो तो बहुत अजीब सा लगता है। राजनेतिक गुणा भाग बनाने वालों ने उझानी को बदायूं से अलग करके विधानसभा सीट ना बनने देना और शेखूपुर को विधानसभा सीट बनवाना उझानी के विकास की पटरी से हटने का सबसे बडा कारण नजर आता है । जबकि उझानी में बस अडडा ना होना और बरेली – कासगंज मार्ग से गुजरने वाली कई यात्री रेलगाडियों का उझानी मे ना रूकना उझानी के महत्व को कम करने की एक सोची समझी राजनेतिक चाल के रूप में स्थापित दिखाई देती है।