Archana Upadhyay कभी-कभी सोचती हूँ कुछ लिखूं तुम्हारे लिए। फिर रुक जाती हूँ ये सोचकर। । जो मन की भाषा न समझा वो क़लम की भाषा क्या समझेगा। ।।