पुण्यतिथि पर विशेष: 16 मई 2024
हिन्दी गीत, नवगीत और ग़ज़ल के बेताज बादशाह डॉ. उर्मिलेश बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे। वे एक सफल अध्येता, कुशल समीक्षक, यशस्वी मंच-संचालक तथा जन-जन के हृदय पर आधिपत्य स्थापित करने वाले युवा हृदय-सम्राट थे। हिन्दी-जगत् में वे अल्प अवधि में ही लोकप्रियता के शिखर पर पहुँच गये-इसका कारण उनका चुम्बकीय व्यक्तित्व, हृदयावर्जक भावाभिव्यंजना तथा दर्शकों की हृत्तन्त्री को झंकृत कर देने वाला सुमधुर काव्य-पाठ
डॉ. उर्मिलेश का जन्म 6 जुलाई, 1951 ई. को ननिहाल में इस्लामनगर (बदायूँ) में हुआ। पिताश्री स्व० भूपराम शर्मा ‘भूप’ ग्राम भतरी गोवर्धनपुर में यशस्वी जनकवि के रूप में विख्यात थे। डॉ. उर्मिलेश ने. मै. शिव नारायण दास स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बदायूँ में हिन्दी विभाग के रीडर/अध्यक्ष पद पर सुशोभित थे। डॉ. उर्मिलेश की साहित्य-साधना बहुमुखी थी, उन्होंने अल्प अवधि में अनेक हीरक हिन्दी जगत् को प्रदान किये, जिनकी आभा आज भी विद्यमान है। ‘साहित्य और समालोचना के सरल आयाम’, ‘नया सप्तक: व्याख्या और विवेचन के नए आयाम’ तथा ‘गीति सप्तकः पहचान और परख’ उनके प्रमुख समीक्षात्मक ग्रन्थ है। डॉ. उर्मिलेश द्वारा रचित काव्य ग्रन्थों की सूची निम्नवत् है- ‘‘सोत नदी बहती है’’, ‘‘धुआँ चीरते हुए’’ (ग़ज़ल संग्रह), ‘‘डॉ. उर्मिलेश की ग़ज़लें’’, ‘‘घर बुनते अक्षर’’ (मुक्तक संग्रह), ‘‘चिरजीव हैं हम’’ (गीत संग्रह), ‘‘गंधो की जागीर’’ (दोहा संग्रह), ‘‘वरदानों की पाण्डुलिपि’’ (दोहा संग्रह), ‘‘बाढ़ में डूबी नदी’’ (गीत संग्रह), ‘‘फैसला वो भी ग़लत था’’ (ग़ज़ल संग्रह), ‘‘धूप निकलेगी’’ (ग़ज़ल संग्रह), ‘‘जागरण की देहरी पर’’ (गीत संग्रह), ‘‘बिम्ब कुछ उभरते हैं’’ (गीत संग्रह) तथा ‘‘आईने आह भरते हैं’’ (ग़ज़ल संग्रह)। विनय कैसेट्स, नीमच (म. प्र.) ने ‘‘डॉ. उर्मिलेश कैसेट्स’’ तथा डॉ. विष्णु सक्सेना ने ‘‘डॉ. उर्मिलेश के गीत’’ कैसेट की भावभीनी गीतांजलि प्रस्तुत की है।
डॉ० उर्मिलेश की काव्य-साधना विराट है, उनका चिन्तन राष्ट्रव्यापी है, वे रस-सिद्ध कवि और नये तेवर के यशस्वी ग़ज़लकार रहें। बदायूं क्लब के सचिव के रुप में आपने जिले सांस्कृतिक एवं साहित्यिक गतिविधियों को एक नया आयाम दिया। उनके द्वारा स्थापित जिले का प्रमुख सांस्कृतिक उत्सव ‘बदायूँ महोत्सव’ आज प्रदेश एवं देश के प्रमुख आयोजनों में से एक है। ‘गीत गन्धर्व’, ‘भारतश्री’, ‘साहित्य सारस्वत’, ‘युग चारण’, ‘कवि भूषण’ तथा ‘राष्ट्रकवि’, ‘यशभारती’ अलंकरण आज भी उस ‘प्रिन्स’ की प्रतीक्षा कर रहे हैं। चेहरे पर वही मधुर मुस्कान…………….व्योम में झूलते दोनों हाथ……..होठों पर अमृत स्यन्दिनी कविता का हास…………वाणी में गूँजती राष्ट्र-लहरी………उर्मिलेश गा रहे हैं-
‘‘उलझनों के दौर आखिर कब नहीं होंगे
याद तो होगी हमारी हम नहीं होंगे’’