8:16 pm Friday , 31 January 2025
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बदायूं सीट का इतिहास, अपने किये फेल और बाहरी पास !

बदायू की बात – सुशील धींगडा के साथ
बदायूं लोकसभा सीट पर आजादी के बाद होने वाले चुनाव में पांच बार कांग्रेस, छह बार समाजवादी पार्टी, दो बार भारतीय जनसंघ, एक बार जनता दल, एक बार जनता पार्टी और दो बार भाजपा के उम्मीदवारों को विजय प्राप्त हुई है परंतु खास बात यह रही कि बदायूं के मतदाताओं ने मतदान करते समय घर को जोगी जोगणा आन गांव का सिद्ध वाली कहावत को कई बार अपनी पसंद बनाया। आजादी के बाद पहली बार हुए 1951 के चुनाव में बदायूं सीट पर कांग्रेस के चौधरी बदन सिंह, 1957 में कांग्रेस के बाबू रघुवीर सहाय, 1962 और 1967 में जनसंघ के ठाकुर ओंकार सिंह, 1971 में कांग्रेस के करन सिंह यादव, 1977 में जनता पार्टी से ठाकुर ओंकार सिंह सांसद बने जबकि 1980 में होने वाले मध्यवर्ती चुनाव में कांग्रेस के मौहम्मद असरार अहमद एवं 1984 में कांग्रेस के सलीम इकबाल शेरवानी जीत का परचम लहराया जबकि 1989 के चुनाव में जनता दल के शरद यादव, 1991 के मध्यवर्ती चुनाव में भाजपा के स्वामी चिन्मयानंद सांसद चुने गए। इसके उपरांत सलीम इकबाल शेरवानी सपा में शामिल होकर मैदान में उतरे और 1996, 1999 एवं 2004 में लगातार चार बार सांसद बने। 2009 और 2014 में सपा के उम्मीदवार बने और सांसद चुने गए जबकि 2019 में भारतीय जनता पार्टी की डॉक्टर संघमित्रा मौर्य बदायूं की सांसद बनी। अब इस इतिहास पर निगाह डाली जाए तो ऐसा लगता है कि बदायूं के मतदाताओं ने स्थानीय से ज्यादा प्यार बाहरी उम्मीदवारों को दिया। जब ठा आकुर सिंह बदायूं के सांसद बने तब वह दातागंज के ग्राम बेला डांडी के निवासी थे और इसी के चलते जनसंघ में उनको बेला नरेश कहा जाता था। सलीम इकबाल शेरवानी, शरद यादव और स्वामी चिन्मयानंद ऐसे सांसद रहे जिन्होंने बदायूं में आवास नहीं बनाया। असरार अहमद जब सांसद बने तो बदायूं शहर के नहीं सैदपुर के निवासी थे और सांसद डा संघमित्रा कुशीनगर की रहने वाली थी।