Sugandha Sharma
कुछ शब्द आज भी अधूरे है
तुमसे मिलकर वाक्य बनने के लिए
तरंग की तरह तैरते रहते हैं
आकाश गंगा रूपी मेरे मन में
वर्णो से बने इन शब्दों को अब
तुमसे आलिंगन करने का मन है
तुमसे जुड़कर रसमय कविता बनकर
अब श्रृंगार रस से ओत पोत होने को मन है !
#सुप्रभात_जिंदगी
#सुगंधा
#जय_माता_लक्ष्मी