बता पाया न आईना हमारा।
कहाँ पर खो गया चेहरा हमारा।
न हम ज़र्रे न हम क़तरा है कोई
न सहरा है न ये दरिया हमारा
मुसलसल धूप में चलते रहे हम
हमें छलता रहा साया हमारा
खिला गुल और फिर मुरझा गया बस
यही है मुख़्तसर किस्सा हमारा
चलो इस जिस्म से बाहर मिलें हम
अगर है रूह का रिश्ता हमारा
जहाँ में यूँ न हम बरबाद होते
तो फिर होता कहाँ चर्चा हमारा
उसी दिन छोड़ दी थी हमने दुनिया
किसी से साथ जब छूटा हमारा
सिया जब हम किसी के हो न पाये
कोई फिर किसलिए होता हमारा
सिया सचदेव