दौड़ती भागती हांफती ज़िंदगी
एक सी है थकन एक-सी ज़िंदगी
दिल पे है इसके बेचैनियों का असर
रात भर जागती ऊंघती ज़िंदगी
इस कहानी का जब हो गया खात्मा
बन के मुझसे मिली अजनबी ज़िंदगी
शोर भीतर का जब अनसुना कर दिया
देर तक चीख़ती रह गयी ज़िंदगी
था थकन से भरा ख्वाहिशों का सफ़र
बस उम्मीदों में ही काट दी ज़िंदगी
बोझ लगने लगें अपनी सांसें ही जब
तंग आकर करें ख़ुदकुशी ज़िंदगी
बस किसी पर नही रह गया जब सिया
तब से लगने लगी बेबसी ज़िंदगी
सिया सचदेव