8:29 pm Friday , 31 January 2025
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अपनी ही परछाइयों से – Sonroopa Vishal

अपनी ही परछाइयों से दूर होकर
क्या मिलेगा चाँद को आकाश खोकर

रेत में उम्मीद के कुछ बीज बो कर
पत्थरों के सामने आए हैं रोकर

अब मेरे जज़्बात लावारिस नहीं हैं
काग़ज़ों में रख दिये हैं सब संजो कर

कुछ पलों को ही सही मुस्कायेगी वो
आईना देखेगी जब बालों को धोकर

सोच लेंगे फूल के मानिंद हैं हम
जाएगा जब कोई काँटों को चुभोकर

हो गयीं हासिल उसे भी रोटियाँ कुछ
मुफ़लिसी को मिल गयी हैं कार धोकर
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Sonroopa Vishal