अपनी ही परछाइयों से दूर होकर
क्या मिलेगा चाँद को आकाश खोकर
रेत में उम्मीद के कुछ बीज बो कर
पत्थरों के सामने आए हैं रोकर
अब मेरे जज़्बात लावारिस नहीं हैं
काग़ज़ों में रख दिये हैं सब संजो कर
कुछ पलों को ही सही मुस्कायेगी वो
आईना देखेगी जब बालों को धोकर
सोच लेंगे फूल के मानिंद हैं हम
जाएगा जब कोई काँटों को चुभोकर
हो गयीं हासिल उसे भी रोटियाँ कुछ
मुफ़लिसी को मिल गयी हैं कार धोकर
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Sonroopa Vishal