जीवन…
मै कौन हूँ
जा रहा हूँ कहाँ
कब तलक …
मै मौन हूँ…!!
तन मलिन है
श्वास सुगंधित
जैसे कोई वृक्षों
को रोपता है जा रहा
वायु में बह रहा
जल में है घुल रहा
आत्मा परमात्मा को
सौंपता जा रहा है !!
पथ नहीं कठिन
कोई, भटक रहा
है हर कोई
राग में …
मल्हार में…
या प्रकृति की छाँव में
ढूँढता ठौर हूँ..!!
जीवन …
मै कौन हूँ
जा रहा हूँ कहाँ
कब तलक
मैं…
मौन हूँ ।।
चल ये मन
जल के तट
मुक्त वो बहाव है
पावनी बयार संग
तरंग लाजवाब है
गंगा की धार में
मिट गया सब त्रास है
मै भी अब
कुछ और हूँ…!!
जीवन
मैं कौन हूँ…
जा रहा हूँ कहाँ
कब तलक
मै मौन हूँ…।।
सीमाचौहान सहसंयोजक ब्रज प्रांत गंगासमग्र