बदायूं की बात – सुशील धींगडा के साथ
बदायूं में चार दशक बीत गए लेकिन कोई स्थानीय बल्लेबाज बदायू वालों को जीत का जश्न मनाने का मौका नहीं दे पाया। कभी किसी राजनेतिक दल ने स्थानीय बल्लेबाज नहीं दिया तो कभी बदायूं के मतदाताओं को स्थानीय बल्लेबाज पसंद नहीं आया। अब वर्तमान चुनाव में जो हालात बनते दिखा रहे हैं उसमें भी स्थानीय बल्लेबाज मुश्किल से नजर आएगा और आ भी गया तो मतदाताओं की पसंद बनने के लिए उसको मौका मिलना मुश्किल लग रहा है। ऐसा लग रहा है कि बदायूं मे से चुनाव जीतने वाले वह उम्मीदवार होगा जिसका बदायूं मे ंना अपना मकान होगा और ना वह बदायूं संसदीय सीट का मतदाता होगा। इस चुनाव में यह भी अपने और वह भी अपने जनता के हिस्से में आएगें सपने वाले हालात एक बार फिर सामने आएगें।