10:18 am Friday , 31 January 2025
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भावनाओं से बने संबंध में हम – सोनरूपा

भावनाओं से बने संबंध में हम
भावनायें ही समझना भूल बैठे
और तब से फूल खिलना,पात हिलना
स्वप्न पलना,दृग चमकना भूल बैठे

एक युग को जी लिया कुछ ही बरस में साथ हमने
मांगलिक रंगों से दमकाया प्रणय का माथ हमने
जब समर्पण के सुगंधित इत्र से भीगे हुए थे
तीक्ष्ण बेपरवाहियों के पात्र ढंकना भूल बैठे

धैर्यता व्याकुल हुई क्यों यह नहीं हमने विचारा
भार को ज्यों नाव से हमने नहीं मिल कर उतारा
चेतनायें हो गयीं प्रतिकूल ऐसा लग रहा है
इसलिए हम ग़लतियों से हाथ मलना भूल बैठे

क्या कभी दिनकर से उसकी रश्मियों ने दान माँगा ?
फूल ने धरती से खिलने को कभी उद्यान माँगा ?
जब स्वत: ही प्राप्य हो सब तो भला क्या चाह होगी
हम यही इक दूसरे की चाह रखना भूल बैठे

कुछ हमारी,कुछ तुम्हारी हैं अपेक्षाएँ अधूरी
जो हमारी हर घड़ी को कर रहीं जैसे धतूरी
हर कहन की बाँसुरी में प्राण हमने फूँक डाले
हम अकथ की नब्ज़ पर ही हाथ धरना भूल बैठे

~ सोनरूपा