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शहरों से चलकर देहात तक ,अमीरों के चक्कर में बेचारा पिस रहा गरीब *—–*—**उझानी बदायूं 1 मार्च 2024।
आज कल शादियों का सीजन चल रहा है देहात परिवेश में होने वाली शादियों में एक नई रस्म का जन्म हुआ है हल्दी रस्म। जो रस्म तो कम फिजूलखर्ची ज्यादा नजर आती है।
हल्दी रस्म के दौरान हजारों लाखों रूपये खर्च कर के पांडाल को पीले कलर से विशेष डेकोरेट किया जाता है।लाइटिंग पीली, स्टेज पीला ही रखा जाता है, उस दिन दूल्हा दुल्हन तो क्या नाते रिश्तेदारों भी विशेष पीले वस्त्र धारण करते हैं। साल 2020 से पूर्व इस हल्दी रस्म का प्रचलन ग्रामीण क्षेत्रों में कहीं पर भी देखने को नहीं मिलता था, लेकिन पिछले दो-तीन साल से इसका प्रचलन बहुत तेजी से ग्रामीण क्षेत्र में बढ़ा है।
पहले हल्दी की रस्म के पीछे कोई दिखावा नहीं , बल्कि तार्किकता होती थी। पहले ग्रामीण क्षेत्रों में आज की तरह साबुन व शैम्पू नहीं थे और ना ही ब्यूटी पार्लर था। इसलिए हल्दी के उबटन से घिसघिस कर दूल्हे-दुल्हन के चेहरे व शरीर से मेल को हटाने, चेहरे को मुलायम और चमकदार बनाने के लिए हल्दी, चंदन, बेसन,आटा, दूध से तैयार उबटन का प्रयोग करते थे। ताकि दूल्हा-दुल्हन सुंदर लगे। इस काम की जिम्मेदारी घर-परिवार की महिलाओं की थी। लेकिन आजकल की हल्दी रस्म बहुत ही आकर्षक व दिखावटी और मंहगी हो गई है। जिसमें हजारों लाखों रूपये खर्च कर डेकोरेशन किया जाता है। महंगे पीले वस्त्र पहने जाते है। दूल्हा दुल्हन के घर जाता है और पूरे कार्यक्रम को पीताम्बरी बनाने के भरसक प्रयास किये जाते हैं। यह पीला ड्रामा घर के मुखिया के माथे पर तनाव की लकीरें खींचता है ।
पुराने समय में जहां कच्ची छतों के नीचे पक्के इरादों के साथ दूल्हा-दुल्हन बिना किसी दिखावे के फेरे लेकर अपना जीवन आनंद के साथ शुरू करते थे, लेकिन आज पक्के इरादे कम और दिखावा और बनावटीपन ज्यादा होने लगा है। ओर यह सिर्फ रील्स बनाने के चक्कर में।
आजकल देखने में आ रहा है कि शहरों की तरह ही ग्रामीण क्षेत्र में आर्थिक रूप से कमजोर परिवार के लड़के भी इस शहरी बनावटीपन में शामिल होकर परिवार पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ बढ़ा रहे है। इंस्टाग्राम, फेसबुक आदि के लिए रील बनानी है। बेटे के रील बनाने के चक्कर में बाप की कर्ज़ उतरने में ही रेल बन जाती है।
अब पीला टेंट , पीले कपड़े, टबों में पीला पानी, पीले फूल,पीले धुआं के पटाखे,जहां तक कि मेहमानों को पीले कलर के ही व्यंजन परोसे जाते हैं। नवयौवन लड़के-लड़कियां बिना समझे अपने मां-बाप की हैसियत से विपरीत जाकर अनावश्यक खर्चा करते हैं। पहले दूल्हा शादी तय होने के बाद बारात लेकर ही दुल्हन के घर जाता था,मगर अब हल्दी रस्म निभाने पहले ही ससुराल पहुंच जाता है।
पहले हल्दी लगे दूल्हे व दुल्हन को अकेला कहीं जाने नहीं दिया जाता था। मगर अब वह कहीं भी कभी भी आ -जा सकता है।
जिन परिवारों की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं हो उन परिवारों के बच्चों को मां-बाप से जिद्द करके इस तरह की फिजूल खर्ची नहीं करवानी चाहिए। राजेश वार्ष्णेय एमके