2:17 pm Friday , 31 January 2025
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जीवन दर्शन- जीवन में भी पत्रों ने कितनी बड़ी भूमिका – सोनरूपा

पत्र सदियों से संप्रेषण का सिद्ध माध्यम है । इंसान ने जब लिखना सीखा तभी से पत्र लिखे जाने लगे।पत्र भावनाओं के आदान प्रदान का सर्वश्रेष्ठ माध्यम रहा है।पत्र साहित्य पर आगे लिखूँगी।अभी तो कुछ स्मृतियाँ मुस्कुराती हुई मुझे देख रही हैं और कह रही हैं लिखो वो सब जो मन ही मन दोहराती रहती हो।

हाँ, हमारे जीवन में भी पत्रों ने कितनी बड़ी भूमिका निभाई है।
आज से कुछ दशक पहले पत्रों का आदान प्रदान मुख्य स्त्रोत था सूचना का।दुख,सुख,चिंता,प्रेम,अवसर,आयोजन,उलाहना,शिकायत सारे मफ़हूम चिट्ठियों में खप,सृज जाते थे।

इसके अलावा नव वर्ष पर, दीवाली पर,होली पर शुभकामनाओं भरे ग्रीटिंग कार्ड खोलने की जल्दी वाले वो दिन याद आते हैं तो मन अभी भी प्रसन्न हो उठता है।टेलीग्राम पर चार शब्दों में सूचना देने वाले दिन कौन भूल सकता है भला?

डाकिये की ख़ाकी पोशाक ,लाल लैटर बॉक्स ,गोंद से लिफाफ़े चिपकाते हम लोग।चिट्ठियों के ऊपर लगे डाक टिकट को कितनी सुथराई से निकालते थे हम लोग।इन्हें एकत्र करते थे।पोस्ट कार्ड पर रंग बिरंगे स्केच से लिखे संदेश।
कब ये दिन स्मृति में बदल गये पता ही नहीं चला।
साथ ही हमारी भावनाओं का प्रकटीकरण कब मोबाइल और सोशल साइट्स के आधीन हो गया हम जान ही न पाए।

हम जो अपनी ख़ुशी लिख कर जाहिर करते थे अब अधिकतर इमोजी में करने लगे।हम ज़ोर से हँसते हैं,हम उदास होते हैं,हम रोते हैं ,हम गुस्सा होते हैं तो अनगिनत इमोजी हमारे सामने इन भावनाओं को व्यक्त करने के लिए हाज़िर हो जाते हैं।शब्दों के अति संक्षिप्त रूप भी प्रचलित हैं जो हमारे मनोभावों को व्यक्त करने में सहायक हैं।
जो कम एक्सप्रेसिव थे उनके लिए तो ये दुनिया बड़ी सहायक हुई।वो एक साथ सौ सौ लोगों को सुप्रभात,सुविचार भेजने लगे।

लेकिन ये भी सच है कि बिछोह मिलन की उत्कंठा को बढ़ाता भी है।लोग अब फिर से पत्राचार की ओर मुड़ें इसके प्रयास स्वरूप अभी शार्क टैंक के तीसरे सीज़न में एक पिच देखी मैंने।किसी एक ग्रुप ने डाकरूम स्टार्ट अप शार्क टैंक के सामने रखा।जिसमें नयी पीढ़ी को चिट्ठियों की ओर लौटाने के मनभावन तरीक़े हैं।

चलिए,थोड़ा और अतीत में चलते हैं।पत्राचार की व्यापकता पर भी दृष्टि डाल लेते हैं।

जब काग़ज़ क़लम का अविष्कार हुआ तो काग़ज़ के माध्यम से संप्रेषण होता था।आज के आधुनिक युग में ई पत्र लिखने का चलन है।
पत्र साहित्य एक विशेष विधा के रूप में स्थापित हुआ और अपनाया गया।
इसमें व्यक्त हुई आत्मीयता और अकृत्रिमता ने पाठकों का मन मोह लिया।
पत्र लेखन की बात करें तो लेखक का पत्र साहित्य संसार के लिए मूल्यवान धरोहर बन गये|
ऐसे उदाहरण मिलते हैं की भक्ति काल में मीरा बाई तुलसी और रैदास जैसे संतों से पदावली में पत्राचार करती थीं और जवाब भी उनको उसी विधा में मिलता था।मीरा बाई भगवत चर्चा पत्र के माध्यम से करती थीं और ये पत्र साहित्य के पुरातन परंपरा का अनुपम उदाहरण है ।
दूर देशों में संदेश पहुंचाने के लिए पत्र प्रेषण का माध्यम पक्षियों को भी बनाया गया और कालांतर में हरकारे पत्रों के आदान प्रदान के माध्यम बने ।
आधुनिक डाक सेवा हो या अन्य संचार माध्यम हों या पुरातन में पक्षियों या हरकारों के माध्यम से संदेश पहुंचाना, ये सब पत्र साहित्य का अभिन्न अंग रहे हैं ।
कुछ पत्राचार तो पत्र साहित्य का अभिन्न अंग बन गए एवम विभिन्न देशों के संग्रहालयों में सुरक्षित हैं।

सिमोन और महान दार्शनिक सात्र के बीच का पत्राचार साहित्य की अनुपम कृति बन गई । साहित्यिक विषयों और टिप्पणियों के आदान प्रदान में संवेदनाएं इतनी तरंगित हुईं की सिमोन और सात्र के एक दूसरे हो लिखें गए पत्र महत्व पूर्ण दस्तावेज़ बन गए ।

युद्ध के दरमियान नेपोलियन के अपनी पत्नी और बहन कैरोलिना को लिखे गए पत्र महत्वपूर्ण ऐतिहासिक तथ्य बन गए ।
आज भी गांधी के विभिन्न महापुरुषों को लिखें पत्र विभिन्न संग्रहालयों में सुरक्षित हैं ।
नेहरू के पत्र जो उन्होंने अपनी बेटी इंदिरा को लिखे थे , आज भी पिता और पुत्री के बीच रिश्ते की मजबूती की व्याख्या करते हैं।

हम उन पत्रों को भी पत्र साहित्य में सुरक्षित कर लें जो प्रेमिकाओं ने अपने प्रेमियों को लिखीं तो होंगी पर वो पत्र सही पते पर नहीं पहुंचे होंगे ।
उन अनगिनत बिरहनियों के पत्र भी हम पत्र साहित्य में संरक्षित कर लें जिनके पतियों को गिरमिटिया मजदूर बना कर दूर देश जैसे मोरीशश ,जावा,सुमात्रा एवम अन्य दूर देशों में भेजा गया ।

सच यही है कि पत्र अव्यक्त भावनाओं को भी व्यक्त करने का सशक्त माध्यम सदियों से बना हुआ है ।

साहित्य के द्वारा व्यक्ति के निजी अनुभव, प्रतिक्रिया और किसी व्यक्ति विशेष पर उसके विचार को काफी हद तक स्पष्ट किया।कितनी ही तत्कालीन परिस्थितियाँ इन पत्रों के माध्यम से उजागर हुई।
समय क़लमबद्ध हुआ।
साहित्यकार पत्रों के माध्यम से संवाद करते थे जिन्हें बाद में सम्पादित भी किया गया।विवेकानंद पत्रावली,मित्र संवाद जैसे संचयन इसी का उदाहरण हैं।

फिल्मों की ओर चलें तो फिल्मों में न जाने कितने गीत ख़तों पर,चिट्ठियों पर लिखे गये।कितने ही प्रेमी प्रेमिका अपनी हसरतों को इन गीतों के माध्यम से कहने लगे।
कभी एक भोली भाली प्रेमिका जब कहती है ‘खत लिख दे संवरिया के नाम बाबू वो जान जाएंगे’ तो उसका शर्मीलापन और अल्हड़पन मन मोह लेता है।
‘चिट्ठी आयी है आयी है चिट्ठी आयी है’ इस गीत को सुनकर घर से दूर रह रहे कितने ही लोग अपने देश की मिट्टी,अपने रिश्तों की महक को चिठ्ठी में लिखे शब्दों में महसूस कर आंसुओं में भीग जाते थे।
लिखे जो खत तुझे,फूल तुम्हें भेजा है खत में ,चिट्ठी न कोई संदेश,कबूतर जा जा ऐसे कितने ही गीतों ने हमारे जीवन में घुली हुई भावनाओं की गहराई को बयान किया।

हमारे जीवन में भी पत्रों ने कितनी बड़ी भूमिका निभाई है।
आज से कुछ दशक पहले पत्रों का आदान प्रदान मुख्य स्त्रोत था सूचना का।

पत्रों की इस समृद्ध थाती को जब सोचने बैठती हूँ तो लगता है दोबारा आ जाए वो समय।

व्हाट्सअप के समय में जब हम अपनी भावनायें कभी कभी फॉरवर्डेड मेसेज के माध्यम से जताते हैं तो ऐसे में लगता है कि कहाँ गयीं हमारी अपनी भावनाएं।जिसमें बाहरी सहारों का कोई घालमेल नहीं था।हमारे एहसास जताने के लिए कोई इमोजी नहीं थे ।
था तो केवल हमारा अपना भाव।हमारे पत्र,चिट्ठियां,पाती,संदेसा,खत।

तो मन हुआ कि उस बीते हुए समय को फिर से जी लिया जाए और कोशिश की जाए फिर से चिठ्ठियों की सोंधी सोंधी ख़ुशबू से अपना मन और सबका मन महकाया जाए।
इसी कोशिश को अंजाम देने के लिए कल हमने एक साँझ सजाई है जिसमें हमने तय किया है कि इस बार कोई कविता ,कहानी नहीं।इस बार बस पत्र लेखन और वाचन।

इस बार हम अपने प्रिय किसी को भी एक पत्र लिखेंगे और अपने शब्दिता परिवार में शेयर करेंगे। ये पत्र किसी के प्रति भी हो सकता है।प्रकृति के प्रति,अपने परिवारीजन के प्रति,अपने सखा के प्रति,अपने प्रिय के प्रति। किसी के भी लिए।

आप भी अपने शहर,अपने कस्बे,अपने गाँव में चिठ्ठियों से भरी पूरी बैठक जमाइये। मुझे यक़ीन है आपको अच्छा लगेगा।तभी तो ये इन्वाइट और लेख फेसबुक पर शेयर किया।

ख़ुशबुओं को रोकना नहीं चाहिये और ये पहल क्या कम है एक ख़ूबसूरत एहसास की ख़ुशबू से।

~ सोनरूपा