मेरे राम सेवा आश्रम पर निरंतर चल रही सेवा,संस्कार और मेरे राम की प्राण प्रतिष्ठा को समर्पित श्री रामकथा महोत्सव के सातवे दिन सामाजिक संत रवि जी समदर्शी महाराज ने बताया कि इस कलयुग में श्री रामकथा कल्प वृक्ष है सभी के मनोरथो को पूर्ण करती है , राजा जनक विश्वामित्र जी से कहते हैं ये दोनों बालक कौन है क्या किसी राजा के बेटे राजकुमार है या मुनि कुल से हैं
मुझे तो लगता है कि पृथ्वी पर साक्षात ब्रह्म मनुष्य रुप में आ गया है इन्हें देख कर मेरे मन में अनुराग जागा,जनक जी ने जानकी जी वाले कक्ष में राम लक्ष्मण और विश्वामित्र को सौप दिया,भगवान तो भक्ति के भवन में ही निवास करते हैं
भोजन विश्राम की बाद भगवान ने कहा गुरदेव से कहा लखन जनकपुरी देखना चाहते गुरुजी आज्ञा दी,सारे नगर में दो सुंदर राजकुमार आए हे ऐसा समाचार चारो तरफ़ फैल गया सब ने अपने काम धाम छोड़कर भगवान के दर्शन के ऐसा लगता है जनकपुर वासी कुछ लूटने के लिए आए गरीब को निधि मिल गई होड़ लगी है दर्शन करने की एक सखी कहती है यह दोनों दशरथ के बेटे हैं लखन ने कहा प्रभु यह तो हमारे पिताजी को जानती हो भगवान ने का हमारे पिताजी चक्रवर्ती हैं उन सब जानते हैं आगे बढ़े इतने कहां इनकी माता का नाम कौशल्या है और जो पीछे सुंदर से राजकुमार हैं उनकी मां का नाम सुमित्रा है लखन जी बोले प्रभु ये सखी तो अपनी तरफ कि लगती है थोड़ा इससे बात करते हैं भगवान ने कहा लखन यहां पर माया का बहुत प्रभाव इसलिए विना इधर उधर देखे चलते रहो l सब दर्शन करना चाहते हैं रामजी की लेकिन भगवान अपना मुह नीचे किए हुई चलते हैं तब जनकपुरी की गोपिकाओ भगवान के ऊपर सुमन अर्पित किए अर्थात सुंदर मन,भगवान ने कहा इस अवतार में एक पत्नी व्रत लेकर आया हूं द्वापर में आप सबकी मन इच्छा पुरी होगी l भगवान वापस गुरुदेव के पास आए सयन के बाद प्रातः उठे और गुरुदेव की पूजा के लिए पुष्प लेने अशोक वाटिका में गए माली चाचा को प्रणाम किया से आगे लेकर पुष्प तोड़ने लगे इस समय पुष्प वाटिका में जानकी जी का प्रवेश होता है जो पार्वती जी का पूजन करने आई थी साथ में कुछ सहेलियां है जैसी उन्हें पता चलता है की दो राजकुमार वाग देखने आए हैं जिनकी चर्चा सारे नगर में है,जानकी जी भी देखने को उत्सुक हैं सहेलियों के साथ चल दी,भगवान के कान में पायल के घुंघरू की आवाज पहुंचती है ऐसा लगता है कामदेव हो, प्रभु लखन से अपनी बात करते हैं लखन और श्रृंगार करते हैं भगवान भगवान ने जानकी को दिखा जानकी ने भगवान को दिखा और हृदय में बसा लिया अपना पति स्वरूप मान लिया लेकिन फूल तोड़ते हुए भगवान को देखा उनके चेहरे पर पसीने की बूंदे थी घबराई घबराई सोचने लगी की जिन्हें फूल तोड़ने में पसीना आता है वह धनुष कैसे तोड़ पाएंगे,तब मां भवानी के मंदिर में अपने मन की बात कहने गई प्रणाम किया,मां ने मां भवानी का आशीर्वाद प्राप्त हो गया,वापस राजमहल आई l
मोर ने प्रभु दर्शन सारे पंख छोड़ दिए भगवान को समर्पित हो गया भगवान ने मोर का पंख सीस पर लगा लिया, तब से मेरा है मेरा है कहकर सब प्रेम करने लगे,
धनुष यज्ञ के लिए राजा जनक ने शतानंद जी को बोला राजकुमार सहित गुरुदेव को लेकर आओ सदानंद जी के कहने पर जैसे ही भगवान सहित गुरुदेव का प्रवेश हुआ, जिनकी जैसी भावना थी जैसी साधना थी जैसी दर्शन कक्षा थी उसी के अनुरूप भगवान दिखे भगवान वीरों को महावीर जो,पुत्र रूप में मानते हैं उन्हें पुत्र रुप में दिखे, जनक सुनैना को भगवान दामाद के रूप में देखते हैं
मंडप में अपनी सखियों के साथ जानकी जी का प्रवेश होता है,जानकी जी को देखकर समस्त समाज मोहित हो गया तब बंदी जनों ने बताया जो कोई भी भगवान शंकर के इस धनुष को प्रत्यंचा चढ़ा देगा उसी के साथ जानकी का विवाह होगा और तीनो लोको में जय-जयकार होगी,सभी अपने अपने देवताओं को मनाकर चलते हैं,कहते हैं हे गणेश भगवान मैं आपको सवा मन लड्डू चढ़ाऊंगा और जब नहीं उठा पाते हैं वापस आते हैं तो कहते हैं और किसी से मत तुड़वाना मैं ढाई मन लड्डू चडाऊंगा,सहस्र अर्जुन और रावण धनुष उठाने आए लेकिन धनुष तस से मस ना हुआ
सब ने मिलकर उठाया फिर भी हिला तक ना सके
राजा जनक को क्रोध आ गया,दुखित भाव में बोले लगता है परशुराम ने पृथ्वी से समस्त वीरों को मिटा दिया
अब कोई अपनी वीरता का ढोंग मत पीटना, अपने अपने घर जाओ लगता है,भगवान को जानकी का विवाह मंजूर नहीं
लखन जी खड़े होकर क्रोध में कहने लगे जहां रघुवंशी बैठे होते हैं वहां इस प्रकार की भाषा उपयोग नहीं करते जनक जी को इंगित करके कहने लगी
विश्वामित्र जी ने कहा राघव उठो जनक जी का दुख दूर करो भगवान सहज उठे गुरुदेव को प्रणाम किया माता-पिता को प्रणाम किया पृथ्वी माता को प्रणाम किया अपने इष्ट शंकर भगवान को प्रणाम करके धनुष के पास पहुंचे जैसे ही धनुष को उठाकर डोरी खींची उसी समय कड़कड़ की आवाज के साथ धनुष के टुकड़े-टुकड़े हो गए
जानकी जी को बुलाकर भगवान के गले में माल्यार्पण कर दिया इस समय भृगु के पुत्र भगवान परशुराम क्रोधा वेष में फरसा हाथ में लेकर पधारे गोरा शरीर है मस्तिष्क पर त्रिपुंड का तिलक लगा है जनक जी ने जानकी जी को बुलाकर प्रणाम कराया,विश्वामित्र ने अपना परिचय देते हुए राम लखन का परिचय कराया और राम लखन ने चरणों में माथा रखकर आशीष प्राप्त किया परशुराम जी ने जनक से कड़ी भाषा में पूछा कि धनुष किसने तोड़ा
भगवान ने आगे जाकर विनम्र भाषा में बोला हे नाथ जिसने भी धनुष तोड़ा ,वह आपका कोई दास होगा क्या आज्ञा है मुझे कहें क्रोध में आकर कहने लगे सेवक सेवा करता है ऐसे काम नहीं करता,
जनक की तरफ इशारा करके कहने लगे जिसने भी धनुष तोड़ा है उसे अलग कर दो नहीं तो मैं सभी को मार डालूंगा तब लखन जी आगे आए और बोले बचपन में हमने बहुत सारी धनुइया तोड़ डाली तब तो आप नाराज हुए नहीं,इस धनुष पर आपका कैसा मोह है,
परशुराम जी ने फरसा उठा लिया सारी सभा घबरा गई तब भगवान सामने आए और कहने लगे आप हमसे बड़े हैं हमारा नाम राम है और आपका नाम परसु सहित परशुराम है,
सब प्रकार से बड़े हैं हम आपका आदर करते हैं सब प्रकार से हम आपसे हारे ,हमारे अपराध क्षमा करें वे विप्रदेव , तब परशुराम कहने लगे मुझसे युद्ध कर भगवान बोले कहां चरण और कहां माथा ,मैं आपसे युद्ध कैसे कर सकता हूं मैं तो ब्राह्मणों का सम्मान करता हूं तब परशुराम जी को थोड़ा आभास हुआ उन्होंने कहा मुझे लगता है,तुम विष्णु के अवतार हो भगवान ने कहा मैं तो एक साधारण मनुष्य हूं,यह विष्णु धनुष चला कर दिखाओ,धनुष परशुराम जी के स्कंद से निकलकर सीधे भगवान के हाथ में स्वयं चला गया परशुराम जी समझ गए,विष्णु के अवतार हैं और हाथ जोड़कर क्षमा प्रार्थना करके तपस्या करने के लिए बन पर्वत की ओर चले गए,
आज सातवे दिन की कथा में अंजू चौहान विष्णु गुप्ता एडवोकेट, डा. सनत दुवेदी, अंकित,राजकुमार शर्मा , देवेन्द्र शर्मा मनोज कुमार, विकास चौहान बाबू शाक्य,अरविंद, धर्मेन्द्र राजपुत ,गिरीश पाल सिसोदिया गजेंद्र पंत,अमर साहू ब्रह्मानंद कुमार दीपेश सत्यम प्रवीन भगवान स्वरूप शर्मा कमलेश मिश्रा मोना राखी धर्मेंद्र साहू,अनुराधा सक्सेना,महिंदर सिंह,सहायता शर्मा गुंजन उत्पल दीपा सक्सेना आदि भक्तों ने आरती करके, चाय और प्रसाद प्राप्त कर पुन्य लाभ अर्जित किया,