4:42 am Friday , 31 January 2025
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शीतलहर – शमशेर बहादुर “आंचल”

शीतलहर
कैसा ढाती जुल्म कहर !
यह जाड़े की शीतलहर !!
धुआँ धुआँ है बस्ती में !
घूम रहा अल मस्ती में !
कोहरा ही बस कोहरा है !
हुआ आदमी दोहरा है !
शीतल शीतल चले पवन !
कांप रहा सारा तन मन !
ठंडा गोला हुआ शहर !
यह जाड़े की शीतलहर !
जित देखो उत पाला है !
मौसम गजब निराला है !
बच्चे छिपे रजाई में !
छिपे जानवर खाई में !
रोज निकलने का वादा !
भूल गए सूरज दादा !
भूल गए सब घड़ी पहर!
यह जाड़े की शीत लहर !
नल की टोंटी जाम हुई !
ठंड बहुत बदनाम हुई !
पानी जमकर हुआ बरफ !
गर्मी बैठी एक तरफ !
जमे नदी ,पोखर ,नाले !
जाडे़ के पड़ कर पाले !
जमीं बाबली ताल नहर !
यह जाड़े की शीतलहर !! लाख लगाओ अघियाने !
ठंडक हार नहीं माने !
वह कब किससे हारी है !
क्या बोलें लाचारी है !
हमको नहीं नहाना है !
यह तो फ़क़त बहाना है !
ठंडा पानी लगे जहर !
यह जाड़े की शीतलहर !!
यह जाड़ा है, वह दानव !
जिससें पशु ,पक्षी ,मानव !
सब के सब भय खाते हैं !
कुछ भी न कह पाते हैं !
ठंडक बढ़ती जाती है !
फूटी आंख न भाती है !
लगता आकर गई ठहर !
यह जाड़े की शीतलहर !!

हास्य व्यंग कवि –
शमशेर बहादुर “आंचल”
पटियाली सराय बदायूं
मो.न. – 07452812890