केवट नाव में राम को पार कराई नदी,विगोय में दशरथ ने त्यागे प्राण
बिल्सी। तहसील क्षेत्र के गांव पिंडौल जनता आदर्श रामलीला कमेटी के तत्वावधान में चल रही रामलीला मंच पर बीती रात कलाकारों द्वारा केवट संवाद और भरत मिलाप लीला का मंचन किया गया। जब श्रीराम गंगा किनारे पहुंचे कर केवट से नाव लाने को कहते हैं तब के केवट अपने प्रभु को जान जाता और कहता आपके चरण रज से एक पत्थर की शिला जब नारी बन सकती है तो मेरी नाव तो लकड़ी की बनी हैं इसलिए मैं आपके चरण रज को धोकर अपनी नाव पर चढ़ने दुंगा। तब केवट ने प्रभु श्रीराम के चरणों को धोकर नाव में बैठाकर नदी को पार करा दिया। श्रीराम सोचने लगे कि मैं केवट को उतराई कैसे दू मेरे पास देने के लिए कुछ नहीं है। अपने पति के मन की बात को सीता जी जान जाती है तब अपनी मुद्रिका उतार कर श्री राम को देती है। श्रीराम मुद्रिका को केवट को बढा देते हैं तब केवट कहता है कि आपको मैंने गंगा पार कराया है मुझे आप अपने भवसागर से पार करा देना। श्रीराम यह बातें सुनकर मंद मंद मुस्कुराते हुए चित्रकुट की ओर बढ़ जाते हैं। इधर सुमंत राजा दशरथ के पास पहुंच कर आवाज देते है आवाज को सुनकर राजा दशरथ हे राम कहते हुए अपने नेत्रों को खोलते हुए सुमंत से कहते हैं कहां है मेरा प्राणों से प्यारा राम तब सुमंत जी वन का सारा घटनाक्रम बताते हैं। राजा दशरथ यह घटना सुनकर और व्याकुल हो उठते हैं। हे राम हे राम कहते हुए उनके कानों में श्रवण कुमार का वह दृश्य आने लगता है जब राजा दशरथ तृण अवस्था में थे और उस समय शिकार खेला करते थे वह श्राप याद आने लगता है जो उनको श्रवण कुमार के अंधे माता पिता ने दिया था। वह श्राप था कि हे राजन् तेरे अंतिम समय पर चार पुत्रों में कोई अंतिम संस्कार के समय पास नहीं होगा राजा दशरथ को वह स्वयं कुछ याद होने लगता है। यह सारी घटना को अपनी बड़ी रानी कौशल्या से कहते हैं तभी जोर की हिचकी दशरथ को आती है और उनकी आंखों के आगे अंधेरा छा जाता है। हे राम कहते हुए राजा दशरथ अपने प्राणों को त्याग देते हैं। भरत राम से मिलने चित्रकुट मे पहुंच कर राम से अयोध्या लौटने का अनुरोध करते हैं श्री राम के मना करने पर राम की खड़ाऊ लेकर भरत अयोध्या वापस लौट आते हैं तब भरत गुरु वशिष्ठ द्वारा राजसिंहासन पर खड़ाऊ रखकर एक वनवासी की तरह नंदी ग्राम से अयोध्या का राज्य चलाने लगते हैं।