चाँद नहीं यदि नभ में होता!
मन कैसे कल्पित भावों के रेशम से सपनों में खोता
चाँद नहीं यदि नभ में होता!
प्रियतम से दूरी होने पर कैसे कोई धीरज धरता
कैसे प्रियतम के मुखड़े की वो मयंक से उपमा करता
कैसे नीरव-नीरव रातों में,मनवीणा झंकृत होती
कैसे हृद की पीर ह्रदय से,बिन साथी के नि:सृत होती
कैसे निपट अकेला कोई हँस लेता,मुस्काता,रोता
चाँद नहीं यदि नभ में होता!
चंदा मामा वाली लोरी कभी न फिर बचपन सुन पाता
मां से हठ कर चाँद न अपना कुर्ता,झिंगोला सिलवाता
चरखा कात रही बुढ़िया का कल्पित कोई चित्र न बनता
अपने साथ सफ़र में कोई चंदा जैसा मित्र न बनता
सूर्य रश्मियों से जागा जग, कैसे बिन चंदा के सोता
चाँद नहीं यदि नभ में होता!
चाँद देखकर अर्घ्य चढ़ाती प्रथा न कोई जग में बनती
पेड़ों के झुरमुट के कोई धवल चाँदनी कभी न छनती
कैसे झीलों का धवला सा झिलमिल-झिलमिल रूप निखरता
कैसे पर्वत-पर्वत घाटी-घाटी कोई सोम बिखरता
इस धरती को,अंतर्मन को दर्शन देकर कौन भिगोता
चाँद नहीं यदि नभ में होता!
जाने कितनी कविताओं का जन्म न होता नायक के बिन
तारे कक्षा में आते क्यों अपने प्रिय अध्यापक के बिन
मावस,ग्रहण,पूर्णमासी से ये जग भी होता अनजाना
खिड़की से दो टुक आँखों को कैसे दिखता दृश्य सुहाना
सोचो चाँद तुम्हारा बिन ये जग कितना सूनापन ढोता
चाँद नहीं यदि नभ में होता!
#SharadPurnima #sonroopa_vishal