1:50 pm Tuesday , 29 April 2025
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बज़्म-ए-नूर, ककराला की जानिब से एक तरही मुशायरे का इनअक़ाद

लेकिन हर एक फूल इसी गुलसिताँ का है

स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर बज़्म-ए-नूर, ककराला की जानिब से एक तरही मुशायरे का इनअक़ाद
सोहराब एकेडमिक सेन्टर, ककराला में मुनक़्क़ीद किया गया।
मुशायरे की सदारत उस्ताद शायर जनाब राग़िब ककरालवी साहिब ने की।
बदायूँ से तशरीफ़ लाये शायर डॉ. निशान्त असीम मेहमान-ए-ख़ुसूसी रहे।
तरही मिसरा था ‘ सुनते हैं ये मकान किसी ला मकाँ का है।’

कामिल उरैलवी ने तरन्नुम में अपनी तरही ग़ज़ल कुछ यूँ पढ़ी –
हर इक जबां है कशती ए मिल्लत का बादबां
जो काम बादबां का है वो नौजबां का है

शमीम ककरालवी साहिब ने अपनी तरही ग़ज़ल पढ़ते हुए कहा –
चेहरा कफ़न हटा के मिरा देख लीजिए
बस आख़री वरक़ ये मिरी दास्तां का है

शायर अज़मत खान ने गिरह लगाते हुए कहा –
हम उससे इत्तिहाद की उम्मीद क्या करें
जिस कारबां का मीर ही दुश्मन अमां का है

सोहराब ककरालवी ने अपनी तरही ग़ज़ल पेश करते हुए कहा –
इक रोज़ चांद तारों की फ़सलें उगाएगा पहला पहला क़दम ज़मीं पे अभी आसमां का है

मुशायरे के कन्वीनर शहरयार चाँद ने तरही ग़ज़ल पढ़ी –
हम से हमारे मुल्क के रिश्ते न पूछिये
ये खून क्या ख़मीर भी हिन्दोस्ताँ

मेहमान-ए-ख़ुसूसी डॉ. निशान्त असीम ने अपनी तरही ग़ज़ल पेश करते हुए कहा –
खुशबू जुदा है सबकी अलग सबके रंग हैं
लेकिन हर एक फूल इसी गुलसिताँ का है

आबशार आदम ने अपनी तरही ग़ज़ल यूँ पढ़ी –
असलोब का है और कहीं पर बयाँ का है
हर सिम्त ज़िक्र आज मेरी दास्ताँ का है

सद्र-ए-मोहतरम उस्ताद शायर राग़िब नूरी ने अपनी तरही ग़ज़ल पढ़ते हुए कहा –
अब तक किसी की तल्ख़ कलामी का है असर
अब तक खराब ज़ायका मेरी ज़ुबान का है

तरही मुशायरे में शायरों ने तरही कलाम के अलावा गैर तरही कलाम भी पेश किया। बदायूँ से तशरीफ़ लाये अरशद रसूल ने कहा –
अगर आप चाहें तो गर्दन उड़ा दें
ये मुमकिन नहीं हम क़सीदा सुना दें

डॉ तोहिद अख्तर मुरादाबादी ने फ़रमाया –
इक क़यामत गुज़र गयी अख़्तर
कोई दिल से गया निकल के रात

देर रात तक चले इस मुशायरे में वरिष्ठ पत्रकार हामिद अली राजपूत, मास्टर मुस्लिम खां, अशरफ़ गुलशन, बारिस पठान, हकीम अफ़रोज़, जीशान अंसारी, अशरफ अली खां, अदि मौजूद रहे। मुशायरे की निज़ामत शायर अज़मत खान ने की।
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